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सारी नदियां समुद्र में मिलती हैं फिर भी समुद्र का तल एक सा बना रहता है. इसके पीछे कारण हैं बड़वानल यानी समुद्र के जल में लगी आग. घोडे के मुख और अग्नि के मिले-जुले रूप वाले ऋषि और्व.

कार्तवीर्य के पिता कृतवीर्य बहुत उदार राजा थे. वे हमेशा अपनी प्रजा और दूसरों का ख्याल रखते. भृगुवंशियों यानी भार्गव ब्राह्मणों की विशेष सेवा करते, भरपूर धन देते क्योंकि ये इनके पुरोहित हुआ करते थे.

कृतवीर्य ने इतना दान किया कि जब वे मरे तो उनके बेटों के लिए खजाना खाली था. अब राज-काज कैसे चलता! वैसे भी बेटे कृतवीर्य की तरह दानी और दयालु न थे. उन्होंने भार्गवों से कहा कि वे उनकी धन देकर मदद करें.

दान भी कोई वापस देता है. भार्गवों ने टका सा जवाब दे दिया. यही नहीं उन्होंने उनका मजाक भी बनाया. हारकर कृतवीर्य के वंशजों ने हथियार उठा लिया और संपन्न भार्गवों को लूटने लगे. इस लूट से आपसी शत्रुता बढी, भयानक हिंसा फैली.

निहत्थे भार्गव ब्राह्मण हर ओर बुरी तरह काटे जाने लगे. भार्गवों के आश्रम जंगलों में थे. एक भार्गव स्त्री लुटेरे हत्यारों से बचकर आश्रम से निकल जंगल में भाग आयी. यह ऋषि च्यवन जिन्हें ऊर्व भी कहते थे उनकी पत्नी आरुषी थीं. आरुषी गर्भवती थीं.
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