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सोमवार यानी 04 जुलाई को सोमवती अमावस्या है. इसे स्त्रियों को अखंड़ सौभाग्य प्रदान करने वाला व्रत बताया जाता है. स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति तो होती ही है इसके अलावा भी सोमवती अमावस्या कई कष्टों को दूर करने वाली मानी गई है.
भीष्म ने तो इसे व्रतराज तक कहा है. आपको इस पोस्ट में सोमवती व्रत की कथा, पूजन विधि और उसके साथ ही दरिद्रता, जीवन के छोटे-छोटे कष्टों को दूर करने के लिए सोमवती अमावस्या को किए जाने वाले उपायों के बारे में बताएंगे. पहले कथा सुनते हैं-
सोमवती अमावस्या व्रत कथाः
जब युद्ध के मैदान में सारे कौरव वंश का सर्वनाश हो गया, भीष्म पितामह शर-शैय्या पर पड़े हुए थे. उस समय युधिष्ठर भीष्म पितामह से पश्चाताप करने लगे.
धर्मराज कहने लगे- हे पितामह! दुर्योधन की बुरी सलाह पर एवं हठ से भीम और अर्जुन के कोप से सारे कुरू वंश का नाश हो गया है. वंश का नाश देखकर मेरे हृदय में दिन रात संताप रहता है. अब आप ही बताइए कि मैं क्या करूं, कहां जाऊं जिससे हमें शीघ्र ही चिरंजीवी संतति प्राप्त हो.
पितामह कहने लगे- हे! धर्मराज मैं तुम्हें व्रतों में शिरोमणि व्रत बतलाता हूं जिसके करने एवं स्नान करने मात्र से चिरंजीवी संतान एवं मोक्ष की प्राप्ति होगी. सोमवती अमावस्या का व्रत तुम उत्तरा से अवश्य कराओ जिससे उसका पुत्र तीनों लोकों में यश फैलाने वाला होगा.
धर्मराज ने कहा- पितामह इस व्रतराज के बारे में विस्तार से बताइए. इसका नाम सोमवती क्यों है और इसे सबसे पहले किसने किया था?
भीष्म बोले- कांची नाम की महापुरी है, वहां महापराक्रमी रत्नसेन नाम का राजा राज्य करता था. उसके राज्य में देवस्वामी नामक ब्राह्मण निवास करता था. देवस्वामी के सात पुत्र एवं गुणवती नाम की कन्या थी. एक दिन ब्राह्मण भिक्षुक भिक्षा मांगने आया.
देवस्वामी की सातों बहुओं ने अलग-अलग भिक्षा दी और सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद पाया. अंत में गुणवती ने भिक्षा दी.
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