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आज मैं आपको सामवेद की एक प्रेरक कथा सुनाता हूं.

देवताओं और असुरों में संघर्ष कोई नई बात नहीं थी. दोनों एक दूसरे का अस्तित्व पसंद नहीं करते थे किंतु विधाता ने विधान दिया था कि संतुलन बनाने के लिए आग और पानी दोनों का अस्तित्व साथ रहेगा.

सो दोनों आग और पानी की तरह एक दूसरे के प्रति परम द्वेष के भाव से रहते थे. एक बार इस बात पर संघर्ष आरंभ हुआ कि देवों और असुरों में से ज्यादा बुद्धिमान कौन है. बात बढ़ती चली गई और ब्रह्माजी के पास पंचायत लगी.

युद्ध की नौबत आने लगी. असुरों का कहना था कि उन्होंने देवताओं को अक्सर परास्त किया है लेकिन वे मनुष्यों, यक्ष, गंधर्वों आदि की शक्ति के साथ आते हैं तभी अपना अधिकार प्राप्त कर पाते हैं.

असुरों का दावा था कि वीरता और कूटनीति में देवता उनका मुकाबला नहीं कर सकते इसलिए वे श्रेष्ठ हैं. देवों की ओर से देवराज इंद्र ने भी अपने पक्ष में तर्क देना शुरू किया.

उनका कहना था कि उनके पास आध्यात्मिक शक्ति और तर्क शक्ति है. वे असुरों को अपने कौशल से भगा भी देते हैं. इसलिए बल में वे असुरों के बराबर और ज्ञान में तो बहुत आगे हैं. इसलिए देवता श्रेष्ठ हैं.
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