October 8, 2025

बेईमान ईमानदारों को नहीं ठगते, वे खुद को ठग रहे होते हैं, दुर्भाग्य से उन्हें इसका अहसास नहीं होता-जीवनोपयोगी कथा

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एक धनी व्यक्ति का बटुआ बाजार में गिर गया. बटुए में कई हजार रुपये भी थे. फौरन ही वह मंदिर गया और प्रार्थना करने लगा कि बटुआ मिलने पर प्रसाद चढ़ाउंगा, गरीबों को भोजन कराउंगा.

संयोग से बटुआ एक बेरोजगार युवक को मिला. बटुए पर उसके मालिक का नाम लिखा था. इसलिए उसने सेठ का घर खोजकर बटुआ पहुंचा दिया. बटुए के रुपये छूए तक नहीं गए थे.

सेठ ने युवक की ईमानदारी की प्रशंसा की और उसे बतौर इनाम कुछ रुपये देने चाहे. युवक ने मना कर दिया. इस पर सेठ ने कहा- अच्छा कल फिर आना.

युवक दूसरे दिन आया तो सेठ ने उसकी खूब खातिर की. थोड़ी देर बाद वह चला गया. अपना कष्ट दूर होते ही सेठ भूल गया कि उसने मंदिर में भगवान के सामने कुछ वादे किए थे.

उसके जाने के बाद सेठ ने अपनी चतुराई का मुनीम और सेठानी से जिक्र करते हुए कहा कि देखो वह युवक कितना मूर्ख निकला. हजारों का माल बिना कुछ लिए ही दे गया.

सेठानी बोली- तुम उल्टा सोच रहे हो. वह ईमानदार था. वह चाहता तो सब कुछ अपने पास ही रख लेता। तुम क्या करते? ईश्वर ने दोनों की परीक्षा ली. वह पास हो गया, तुम फेल.
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