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भगवान हमारी सुन नहीं रहे, ज्यादातर लोगों की ऐसी शिकायत होती है. इस पर चिंतन ही नहीं करते कि आखिर क्यों मेरी नहीं सुन रहे. ऐसा तो हो नहीं सकता किसी के साथ कि उसकी कभी कोई प्रार्थना न सुनी हो भगवान ने.
तो जब पहले सुनी थी तो आज क्यों नहीं सुन रहे! यही तो गौर करने की बात है. इसे कोई और नहीं बता सकता, स्वयं शांति से आत्ममंथन करना होगा. क्या आत्ममंथन करना है यह बताया जा सकता है. पहले एक कथा देखते हैं. कथा के अंत में इस विषय पर चर्चा करेंगे.
कुछ धनी किसानों ने मिलकर खेती के लिए एक कुँआ बनवाया. पानी निकालने के लिए सबकी अपनी-अपनी बारी बंधी थी.
कुंआ एक निर्धन किसान के खेतों के पास था लेकिन चूंकि उसने कुंआ बनाने में धन नहीं दिया था इसलिए उसे पानी नहीं मिलता था.
धनी किसानों ने खेतों में बीज बोकर सिंचाई शुरू कर दी. निर्धन किसान बीज भी नहीं बो पा रहा था. उसने धनवानों की बड़ी आरजू मिन्नत की लेकिन एक न सुनी गई.
निर्धन बरसात से पहले खेत में बीज भी न बो पाया तो भूखा मर जाएगा. अमीर किसानों ने इस पर विचार किया. उन्हें किसान पर दया आ गई इसलिए सोचा कि उसे बीज बोने भर का पानी दे ही दिया जाए.
उन्होंने एक रात तीन घंटे की सिंचाई का मौका दे दिया.
उसे एक रात के लिए ही मौका मिला था. वह रात बेकार न जाए यह सोचकर एक किसान ने मजबूत बैलों का एक जोड़ा भी दे दिया ताकि वह पर्याप्त पानी निकाल ले.
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