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बहुत से लोगों के प्रश्न आ रहे हैं कि बच्चे सुनते नहीं है. वे हाथ से निकल रहे हैं. उन्हें कैसे समझाया जाए. जिन बच्चों के सहारे जीवन की आस थी अगर वही रास्ते पर नहीं रहे तो जीवन का क्या लाभ!
इसके दो कारण हो सकते हैं- पहला, आप उस भाषा में सुना नहीं पा रहे जिसमें बच्चे गंभीरता से सुन सकें और मानने को तैयार हों. दूसरा, आपने आशाओं की रस्सी बहुत कसकर बांध दी है. आज इसी विषय पर बात करते हैं.
एक बात आज किशोरावस्था में कदम रखते बच्चों के लिए.
किशोरावस्था एक ऐसी उम्र है जहां शरीर के साथ-साथ दिमाग भी विकास के चरम पर होता है. कद-काठी, बल-बुद्धि-आवेश सब तेजी से बढ़ रहे होंते. कभी आपने अपने घर में तोरी, घीये या मनीप्लांट जैसा कोई पौधा लगाया है जो लत्तर या बेल पर बढ़ता है?
लगाया हो तो याद करिए, उसे सबसे ज्यादा सहेजने की जरूरत तब हुई होगी जब वह तेजी से बढ़ रहा होगा. उसे आप उन रस्सियों पर रोज ठीक करते होंगे क्योंकि हर रात वह उन रस्सियों से दूर भागता होगा.
आप ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि आप जानते हैं कि अगर आज यह इन रस्सियों के सहारे नहीं चला तो कुछ ही दिन में जमीन पर गिरेगा और सड़-गल जाएगा. इसकी तरक्की तो तभी है जब यह रस्सियों को कसकर चले. तभी यह फल देगा नहीं तो गल जाएगा.
माता-पिता, घर के बड़े लोगों, गुरूजनों आदि की बात कभी बहुत चुभ जाए तो उनके प्रति विद्वेष रखने के स्थान पर कभी इस बात को याद कर लीजिएगा,यकीन मानिए ऐसे परिपक्व इंसान के रूप में आप आगे बढेंगे कि एक दिन आप लोगों को मोटिवेट कर सकें.
श्रेष्ठजनों के अनुभव पारस के समान हैं. उनके स्पर्श से ही आप सोना बनेंगे. आपको एक छोटी सी कथा सुनाता हूं.
यदि आप किशोरवय हैं या युवावस्था में हैं तो गौर से पढ़िएगा. यदि आपके बच्चे किशोरावस्था मैं हैं तो इसे समझने का प्रयास करिएगा. जेनेरेशेन गैप यानी दो पीढ़ियों के बीच के उम्र के फासले को खाई नहीं बनने देना चाहिए.
भगवान बुद्ध का ज्ञान इतना व्यवहारिक था कि बहुत से राजा-राजकुमार बुद्ध से जुड़ते जा रहे थे. राजकुमार अभय पर बुद्ध का प्रभाव तो काफी था पर राजपुत्र होने का अभिमान मन में ऐसे फांस की तरह बैठा था जो समय-समय पर उन्हें परेशान करता ही था.
श्रद्धा जब पूरी न हो तो वह कई बार भीतर ही भीतर कुलबुलाती ही है.
अभय ने सोचा कि आज बुद्ध को उनके ही ज्ञान में फंसाया जाए. अभय ने गौतम बुद्ध से प्रश्न किया- क्या श्रमण गौतम कभी किसी के प्रति कठोर वचन कहते हैं?
अभय ने सोच रखा था कि यदि बुद्ध कहें कि कि नहीं मैंने कभी किसी के प्रति कठोर वचन नहीं कहे तो वह उन्हें झूठा साबित कर देगा क्योंकि एक बार बुद्ध ने अभय के सामने देवदत्त को नरकगामी कहा था.
और यदि बुद्ध स्वीकारते हैं कि हां वह भी कठोर वचन कहते हैं तो उनसे सबके सम्मुख ही यह प्रश्न कर दूंगा कि जब आप कठोर शब्दों का प्रयोग करने से स्वयं को रोक नहीं पाते, तब दूसरों को ऐसा उपदेश कैसे देते हैं?
उसने बुद्ध को घेरने और उन्हें नीचा दिखाने की ठान रखी थी.
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