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एक राजा बड़ा दुराचारी था. उसे किसी ने समझा दिया था कि उसके पास यदि ज्यादा से ज्यादा धन होगा तो उसकी सत्ता को कोई चुनौती नहीं दे सकेगा. वह हमेशा राजा बना रहेगा और सभी उससे डरेंगे.
इसी लालच में उसने सोचा कि उसे आस-पडोस के राजाओं से भी ज्यादा अमीर होना चाहता था. उसने अधिक से अधिक धन जमा करने के फेर में प्रजा पर तरह-तरह के कर लगा दिए. समय-समय पर राजा को उपहार देने की परंपरा चला दी.
प्रजा कर चुकाने में कितना कष्ट सहती है इसका राजा को ख्याल न रहता कि प्रजा उसे कर चुकाने और उपहार देने के चक्कर में किन-किन संकटों से गुजरती है.
एक दिन एक संत उस राज्य में आए. लोगों ने उन्हें राजा की सनक के बारे में बताया और उनके दुख को दूर करने का कोई हल निकालने की विनती की.
जब संत राजा से मिलने उसके दरबार में गए तो उन्होंने भी कुछ कंकड-पत्थर सड़क से उठाए और अपनी दोनों मुठ्ठियों में भरकर रख लिया. उन्होंने उसे दबाकर अपनी मुठ्टी में भींच रखा था.
राजा ने उन्हें आदर से बैठने का आसन दिया. संत अपने आसन पर बैठने लगे तभी उनकी मुठ्ठी मेंरखे कुछ कंकड छिटककर फर्श पर गिर पड़े.
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