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ब्रह्माजी को सृष्टि रचना का भार मिला था सो वह रचनाकर्म में जुट गए लेकिन उन्होंने संहार की कोई व्यवस्था नहीं की. ब्रह्माजी के कारण संसार में प्राणी तो आते थे लेकिन जा नहीं सकते थे क्योंकि मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं थी.
इस कारण जल्द ही संपूर्ण पृथ्वी प्राणियों से भर गई. यह देख ब्रह्माजी चिंतित हो गए. जीवों का संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी था कि संहार भी हो, लेकिन कैसे हो, यह समझ में नहीं आ रहा था.
चिंता क्रोध में बदल गई और ब्रह्मा के अंगों से प्रचंड अग्नि निकलने लगी जिसमें प्राणी भस्म होने लगे. अचानक आई आपदा से चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गई. राक्षसों के अधिपति स्थाणु रूद्र ब्रह्मा के पास आए.
स्थाणु ने स्मरण कराया- यह सृष्टि आपने बड़े लगन और परिश्रम से बनाई. अब इसे स्वयं क्यों भस्म कर रहे हैं. उनके कष्टों को देखिए, मेरी तरह आपका मन भी करुणा से भर जाएगा और यह विध्वंस नहीं कर पाएंगे.
ब्रह्माजी ने कहा- हे रूद्र मैं भी मन से ऐसा नहीं चाहता किंतु पृथ्वी पर बढ़ते भार की चिंता के कारण यह शोक है. मैंने प्राणी संतुलन का विचार किया पर मार्ग नहीं सूझता. इससे मेरा क्रोध बढ़ा है.
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