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एक फकीर चले कहीं जा रहे थे. रास्ते में उन्हें एक सौदागर दिखा, जो पांच गधों पर बड़ी-बड़ी गठरियां लादे हुए चला जा रहा था.
गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे. फकीर ने देखा तो उन्हें गधों पर दया आ गई.
उन्होंने सौदागर से प्रश्न किया- अरे सौदागर इन गठरियों में आखिर तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रख ली हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?
सौदागर ने जवाब दिया- इन गठरियों में इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं. उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूं.
फकीर ने पूछा- वह बात तो ठीक है पर ऐसी कौन-कौन सी चीजें लाद ली हैं कि गधे कराह रहे हैं, जरा मैं भी तो सुनूं तुम्हारे माल के बारे में.
सौदागर ने बताना शुरू किया- यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं उस पर जो गठरी लदी है वह अत्याचार की गठरी है.
फकीर ने तौ भौंचक रह गए. उन्होंने पूछा- सौदागर, भला अत्याचार कौन खरीदेगा तुमसे?
सौदागर ने बताया- इसके खरीदार हैं राजा-महाराजा, सत्ता-हुकूमत में बैठे रसूख वाले लोग. काफी ऊंचे दर पर बिक्री होती है अत्याचार की. मोटा मुनाफा होगा मुझे.
फकीर ने आश्चर्य के साथ सुना और गहरी सांस छोड़ेते हुए कहा- ओह हाकिमों में अत्याचार की प्रवृति इतनी ज्यादा बढ़ रही है, ऊपरवाला ही जाने कि क्या होगा आगे. खैर, इस दूसरी गठरी में क्या भरा है?
सौदागर बोला- यह गठरी तो अहंकार से लबालब भरी है.
फकीर ने पूछा- इसे किसके लिए लिए जा रहे हो?
सौदागर बोला- इसके खरीदार है पढ़े-लिखे विद्वान और ज्ञानी. वे इसे लोगों की नजर बचाकर खरीदते हैं. हालांकि वे सभी को इस सामान से दूर रहने की नसीहत करते हैं लेकिन खुद इसे सामर्थ्य से भी ज्यादा खरीदते हैं.
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