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राजा ने बाज से कहा- जो राजा अपनी शरण में आए जीव को उसके शत्रु को सौंप देता है, उसके राज्य में समय पर वर्षा नहीं होती, संतान छोटी अवस्था में मर जाती है, पितरों को पितृलोक में रहने का स्थान नहीं मिलता तथा देवता उसकी पूजा स्वीकार नहीं करते.

इसलिए है बाज मैं अपने शरणागत इस कबूतर को तुम्हें नहीं सौंप सकता. मैं तुम्हारी भूख शांत करने के लिए कबूतर से भी ज्यादा मांस दूंगा.

राजा की बात सुनकर बाज बोला- महाराज मुझे कबूतर से अधिक मांस नहीं चाहिए. यह कबूतर ही देवताओं द्वारा मेरे लिए भेजा गया आहार है. मैं देवों का आभारी हूं. मैं तो इस कबूतर को ही खाउंगा. मुझे दूसरा आहार नहीं चाहिए.

महाराज शिवि ने कहा- बाज मैं अपने प्राण दे दूंगा लेकिन इस कबूतर को नहीं दूंगा. जिस कार्य से मेरी और मेरे प्रजा का अहित होता हो वह कार्य मैं नहीं कर सकता. तुम्हें इसके बदले जो भी आहार चाहिए वह बोलो, मैं सबकुछ देने को तैयार हूं.

इंद्ररूपी बाज ने कहा- राजन! तुम्हारे शरीर के मांस से बेहतर मांस क्या होगा. यदि आप कबूतर को नहीं छोड़ना चाहते तो इसके वजन के बराबर मांस अपनी जंघा से काटकर दे दीजिए. इस तरह मेरी जान भी बच जाएगी और कबूतर की भी.

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1 COMMENT

  1. बहुत प्रेरक कहानी है आप का प्रयास सराहनीय है बहुत बहुत धन्यवाद

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