Sunday, April 27, 2025
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उत्तम कर्म ही धर्म है और धर्म परब्रह्म की प्राप्ति का माध्यमः वेद व्यास ने युधिष्ठिर को सुनाई शंख और लिखित की महाभारत की नीति कथा

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महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर को रक्तपात की पीड़ा सताने लगी. उनका मन विचलित हो गया. महर्षि वेद व्यास उनसे मिलने आए. उन्होंने कहा- आप परब्रह्म को प्राप्त करने का प्रयास करो तो मन को शांति मिलेगी.

युधिष्ठिर ने इसका मार्ग पूछा तो व्यासजी बोले- परब्रह्म वानप्रस्थ पर नहीं ब्लकि गृहस्थ आश्रम पर टिका हुआ है. तुम शास्त्र अनुसार धर्म का पालन करो. मैं तुम्हें दो ऋषि भाइयों शंख और लिखित की कथा सुनाता हूं.

शंख और लिखित नाम दो ऋषिकुमार थे. दोनों धर्मशास्त्र के ज्ञाता थे. अध्ययन समाप्त होने के दोनों ने विवाह किया और अपने-अपने आश्रम बनाकर अलग-अलग कर रहने लगे.

एक बार लिखित अपने बड़े भाई शंख के आश्रम पर मिलने गए. आश्रम में उस समय कोई नहीं था. लिखित को भूख लगी थी. इसलिए उन्होंने बड़े भाई के बाग से फल तोडा और खाने लगे.

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स्वार्थ बुद्धि को बहुत संकीर्ण कर देता है और अनिष्ट का कारण बनता हैः वेद की कथा

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आज मैं आपको सामवेद की एक प्रेरक कथा सुनाता हूं. आपके अनुरोधों को देखते हुए जल्द ही शिवजी की कथाओं की सीरिज आरंभ करने वाला हूं.

देवताओं और असुरों में संघर्ष कोई नई बात नहीं थी. दोनों एक दूसरे का अस्तित्व पसंद नहीं करते थे किंतु विधाता ने विधान दिया था कि संतुलन बनाने के लिए आग और पानी दोनों का अस्तित्व साथ रहेगा.

सो दोनों आग और पानी की तरह एक दूसरे के प्रति परम द्वेष के भाव से रहते थे. एक बार इस बात पर संघर्ष आरंभ हुआ कि देवों और असुरों में से ज्यादा बुद्धिमान कौन है. बात बढ़ती चली गई और ब्रह्माजी के पास पंचायत लगी.

युद्ध की नौबत आने लगी. असुरों का कहना था कि उन्होंने देवताओं को अक्सर परास्त किया है लेकिन वे मनुष्यों, यक्ष, गंधर्वों आदि की शक्ति के साथ आते हैं तभी अपना अधिकार प्राप्त कर पाते हैं.

असुरों का दावा था कि वीरता और कूटनीति में देवता उनका मुकाबला नहीं कर सकते इसलिए वे श्रेष्ठ हैं. देवों की ओर से देवराज इंद्र ने भी अपने पक्ष में तर्क देना शुरू किया.

उनका कहना था कि उनके पास आध्यात्मिक शक्ति और तर्क शक्ति है. वे असुरों को अपने कौशल से भगा भी देते हैं. इसलिए बल में वे असुरों के बराबर और ज्ञान में तो बहुत आगे हैं. इसलिए देवता श्रेष्ठ हैं.

ब्रह्मा ने सोचा कि इस विवाद का रास्ता निकालने के लिए विष्णुजी की ओर बढा दिया जाए. सभी को साथ लेकर ब्रह्माजी श्रीहरि के पास पहुंचे और सारा हाल कह सुनाया.

श्रीहरि ने कहा- बल में दोनों की बराबरी है, बस बुद्धि में अंतर का निर्णय करना होगा. बुद्धि का निर्णय तो तर्क के आधार पर ही हो सकता है. जो इसमें श्रेष्ठ रहा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा.

यदि मैंने तर्क के आधार पर कोई निर्णय दिया तो पक्षपात का आरोप लग सकता है क्योंकि मैं भी देवताओं की श्रेणी में ही आता हूं. इसलिए निर्णय एक साधारण सी परीक्षा से होना चाहिए.

सभी तैयार हो गए. देवताओं और असुरों की सहमति से एक निर्णायक मंडल बना. श्रीहरि प्रतियोगिता में शामिल न होकर निर्णायक मंडल में रहे ताकि यह आरोप न लगे कि उन्होंने देवों को युक्ति बता दी.

एक विशाल परात में लड्डू रखे गए. पहले असुरों को बुलाया गया. उनके हाथों में इतना बड़ा चम्मच बांघा गया कि कोहनी मुड़ नहीं सकती थी. एक घंटे में लड्डुओं को खाना था.

असुरों ने आरंभ किया. हथेली मुड़ सकती नहीं थी इसलिए लड्डु जमीन पर गिरे लगने. जिनके मुख बहुत बड़े थे वे तो लड्डू फिर भी खा लेते थे लेकिन ज्यादातर ने उसे बर्बाद ही किया.

समय समाप्त होने पर देवताओं की बारी आई. उन्होंने दिमाग लगाया. एक देवता चम्मच से लड्डू उठाता और स्वयं खाने की बजाय सामने वाले के मुख में डाल देता. इससे कोहनी मोडने की समस्या खत्म हो गई.

घंटे भर से पहले सारे लड्डू समाप्त हो गए. देवों को विजेता घोषित किया गया. श्रीहरि ने कहा- देवों और असुरों में एक बड़ा फर्क है कि वे अपने बारे में सोचने से पहले दूसरे के बारे में सोचते हैं.

जबकि असुरों का ध्यान सबसे ज्यादा आत्मक्रेंदित होता है. स्वार्थी प्राणियों की बुद्धि छोटी हो जाती है इस कारण उसका बल धरा रह जाता है क्योंकि लोभ उन्हें संगठित होने में बाधा करता है. (सामवेद की कथा)

मित्रों, कलियुग में देवता और असुर दोनों का हमारे शरीर में वास है. जब आपकी बुरी भावनाएं जाग्रत हो रही हों तो समझिए आसुरी शक्तियां प्रभावी हो रही हैं. कुछ अनिष्ट होगा क्योंकि विवेक आपका त्याग करने वाला है.

 

अक्षय तृतीया मतलब क्या सोना खरीदना!

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अक्षय तृतीया पर भविष्य पुराण व पद्म पुराण में कई संदर्भ हैं. श्रीकृष्ण द्वारकाधीश बने तो सुदामा की पत्नी ने कहा-भूखो मरने से अच्छा है राजा की सहायता से जीवनरक्षा. सुदामा श्रीकृष्ण को दरिद्रता बता नहीं पाए पर प्रभु से कुछ छिपा है क्या? सुदामा की झोपड़ी के स्थान पर महल खड़ा था. मित्र की कृपा से दरिद्र सुदामा अक्षय तृतीया के दिन अक्षय संपदा के स्वामी बने थे.

इसके गूढ़ मायने हैं परंतु हम अक्षय तृतीया को बस सोना खरीदने का दिन मान लेते हैं.श्रीमदभागवत के अनुसार स्वर्ण तो कलि का स्थान है फिर वह अक्षय पुण्य का साधन कैसे हुआ? पुराणों में गरीबों को दान का संदर्भ तो है पर सोना खरीदने का नहीं. अक्षय पुण्य अर्जित करना है तो आज अतिथियों का भरपूर सम्मान करें. कोई याचक खाली हाथ न लौटे.सोने के गहने खरीदने की परंपरा चली क्योकि फसल की कटाई पर किसानों के पास कुछ धन जमा होता था. तब धन संचय का सबसे अच्छा साधन था स्वर्ण खरीदना, बैंक या निवेश जैसे प्रबंध नहीं थे.

कैसा रहेगा आपका यह सप्ताहः साप्ताहिक राशिफल (13 अप्रैल से 19 अप्रैल)

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मेषः
यह सप्ताह आपके लिए पक्ष में रहेगा. कई ऐसे काम होंगे या सूचना मिल सकती है जिससे आप आनंदित महसूस करें. आपके विरोधी जो पिछले सप्ताह के अंत तक आप पर हावी होने का प्रयास कर रहे थे उनका मनोबल टूटेगा इससे आप प्रसन्नचित होंगे लेकिन खुशी में असावधान न हों. नौकरीपेशा लोगों के लिए बड़ा उचित समय है. कहीं से कोई बेहतर नौकरी का प्रस्ताव मिल सकता है या इसी नौकरी में प्रमोशन, वेतन वृद्धि या किसी टूर का कार्यक्रम बन सकता है. सप्ताह के मध्य में गृह-निर्माण या भूमि संबंधी कार्यों में तेजी होगी. सप्ताह के मध्य में किसी बात को लेकर थोड़ी चिंता या मानसिक तनाव हो सकता है. वह कारण किसी प्रियजन की अस्वस्थता भी हो सकती है. व्यापारियों के लिए भी समय उचित है. सप्ताह के अंत में लाभ की स्थिति बढ़ेगी. प्रॉपर्टी के कारोबारियों को कुछ लाभ होगा. विवाहित लोगों का दांपत्य सुख उत्तम रहेगा. विद्यार्थियों पर आलस्य का प्रभाव ज्यादा रहने से शिक्षा बाधित हो सकती है. चर्म रोग की भी आशंका है. हनुमत आराधना करें.

वृषः
यह सप्ताह मिले-जुले असर वाला रहेगा. शत्रु का गोचर राशि में होने से आपकी व्यस्तता बहुत ज्यादा रहेगी आप कई मानसिक उलझनों में पड़ सकते हैं लेकिन चिंताजनक बात नहीं है. बुधवार के अंत तक स्थितियां सुधर जाएंगी. एक सुझाव है लोगों पर अंधा विश्वास न करें. मातृपक्ष से कोई प्रसन्नता का कारण हो सकता है. परिवार में किसी उत्सव आदि पर चर्चा होने से सप्ताह का मध्य प्रसन्नता भरा रहेगा. प्रोफेशनल लोगों के लिए समय अच्छा है. व्यस्तता के बाद आप कुछ उल्लासपूर्ण माहौल में रहेंगे. पठन-पठन के कार्य में लगे लोगों के लिए भी समय ठीक-ठाक है. सप्ताह के अंत में धन आगमन का कोई नया रास्ता बनता दिखेगा जिससे आप उत्साहित होंगे. प्रेम संबंधों में मनमुटाव आने से तनाव होगा. विवाहित लोगों का जीवनसाथी के साथ उल्लासमय समय व्यतीत होगा. किसी यात्रा पर जाना हो सकता है या भ्रमण की तैयारी होगी इस कारण परिजनों के साथ मधुर समय बीतेगा. ज्वर या सर्दी की शिकायत हो सकती है. ठंढ़ा पानी पीने में सावधानी रखें. शिवजी को जल चढ़ावें.
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मिथुनः
यह सप्ताह आपके लिए सफलता भरा रहेगा. आपरी राशि पर चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि है इस कारण कई कार्य बड़ी सरलता से बनेंगे. बिजनेस-व्यापार में लाभ का योग है. व्यक्तिगत रिश्ते भी लाभ दिलाएंगे. आपके घर-परिवार में प्रसन्नता का माहौल रहेगा किसी शादी-विवाह आदि की चर्चा होगी या किसी उत्सव में शामिल होंगे. सप्ताह के मध्य में आपको कुछ नई जिम्मेदारियां मिलने वाली हैं इससे आपकी व्यस्तता बढ़ेगी. किसी निकटजन के सहयोग से कुछ कार्य आसान होंगे या कोई लाभ होने वाला है. व्यापार के लिए समय अच्छा है. विद्यार्थियों के लिए भी संकेत शुभ हैं. शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलेगी. सप्ताह के अंत में यात्रा का योग है. जीवनसाथी के साथ संबंध बहुत मधुर रहेंगे. प्रेम प्रसंगों के लिए समय बहुत अच्छा है. विवाह के प्रस्ताव मिल सकते हैं. स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा. गणपति स्तोत्र का पाठ करें तो सौभाग्य में वृद्धि होगी.

कर्कः
यह सप्ताह मिले-जुले फल वाला रहेगा. चंद्रमा छठे भाव में है इस कारण कार्यों में विलंब होगा. कुछ काम बनते-बनते रूक जाएंगे. आपकी वाणी में उग्रता आ रही है उसपर नियंत्रण रखें. कोई विवाद हो सकता है, आपको स्वयं पर नियंत्रण रखकर विवाद से बचना है अन्यथा आप संकट में आ जाएंगे. आपके व्यवहार से आपके किसी प्रियजन को मानसिक कष्ट होगा जिसका लाभ आपके शत्रु उठा सकते हैं. बुधवार तक इस बात का विशेष ध्यान रखना है. बुधवार बीतते-बीतते स्थिति सुधरने लगेगी. व्यापार आदि में लाभ भी होगा. प्रेम संबंधों में तनाव आने से मानसिक तनाव बढ़ेगा इसलिए बोलने में सावधानी रखें. विवाहित लोगों के लिए पत्नी के पक्ष से उत्साहवर्धक समय है. सप्ताह के अंत में सेहत बिगड़ सकती है. शरीर दर्द, ज्वर या कफ जनित रोगों से परेशानी हो सकती है. शिवजी को प्रतिदिन जल चढ़ावें.

सिंहः
यह सप्ताह प्रसन्नता भरा रहेगा. रूके हुए कार्यों में तेजी आएगी. नौकरीपेशा लोगों के लिए अच्छा समय है. कार्यस्थल पर प्रशंसा हो सकती है या किसी नई नौकरी का प्रस्ताव मिलेगा. अधिकारी आपके कार्यों से प्रसन्न हैं और सार्वजनिक रूप से प्रशंसा हो सकती है. व्यापारियों के लिए सप्ताह के मध्य में कोई बड़े लाभ का अवसर बनता दिखेगा. घर-परिवार में किसी उत्सव आदि की तैयारी चल रही हैं इससे उल्सासपूर्ण वातावरण रहेगा. छोटी-मोटी ऐसी खरीदारी होने वाली है जिसके कारण परिजनों को प्रसन्नता होगी. सप्ताह के अंत में आपमें चिड़चिड़ापन आएगा. आपको अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखना है अन्यथा यह उग्रता पूरे सप्ताह के उल्लास को खत्म कर देगी. विद्यार्थियों के लिए समय अच्छा है. जिन लोगों के प्रेम संबंध चल रहे हैं उसमें कुछ तनाव आएगा इसलिए वाणी पर लगाम रखें. व्पापार आदि के लिए समय उचित है. ज्वर और खांसी की समस्या परेशान कर सकती है. सूर्यदेव को जल दें.

कन्याः
यह सप्ताह आपके लिए अनुकूल रहेगा. चंद्रमा के पूर्ण प्रभाव के कारण यह सप्ताह आपके लिए स्थितियां सुधर रही हैं. आपके कार्यों में सफलता मिलनी आरंभ होगी. आत्मविश्वास का योग है इससे लाभ के अवसर बनने वाले हैं. सप्ताह के मध्य में स्वजनों का सहयोग प्राप्त होने से मन प्रसन्न रहेगा. रूके हुए कार्यों में सफलता मिलेगी. प्रोफेशन और व्यापारिक कार्यों के लिए समय अच्छा है. अध्ययन-अध्यापन के कार्यों से जुडे लोगों के लिए भी समय अच्छा है. शोध कार्यों में सफलता मिलेगी. प्रेम संबंधों के लिए समय थोड़ा प्रतिकूल है. सामाजिक कार्यों में आपकी व्यस्तता बढ़ने वाली है. स्वास्थ्य मध्यम रहेगा. उदर विकार हो सकता है. विवाह के इच्छुक लोगों को विवाह के प्रस्ताव आएंगे. गणपति स्तोत्र का पाठ करें.

तुलाः

आपकी चंद्रमा की स्थिति अच्छी है इसलिए इस सप्ताह में सुखद एवं शुभ समाचार मिलेगा. एक साथ कई कार्यों की दिशा में प्रगति हो सकती है. इससे व्यस्तता तो बढ़ेगी लेकिन लाभदायक रहेगा. आपको नए लोगों का साथ मिलेगा, उनकी सहायता से कुछ तरक्की होगी. पुनः बुधवार से सूर्य की दृष्टि के कारण पिता का सहयोग बढ़ेगा और उस कारण भी आपके कुछ कार्यों में प्रगति आ सकती है. प्रोफेशनल लोगों, व्यापारियों और कृषि व्यापार करने वाले लोगों को कुछ उत्साहवर्धक सूचना मिल सकती है. विद्यार्थियों के लिए भी समय अच्छा है. कुछ अच्छे परिणाम सुनने को मिल सकते हैं. सप्ताह के अंत में यात्रा हो सकती है. प्रेम संबंधों के लिए समय थोड़ा खराब है, बहुत सतर्क रहें. आपकी व्यस्तता से आपके दांपत्य जीवन पर बुरा असर हो रहा है. इसलिए पत्नी के साथ मित्रवत रहें अन्यथा क्लेश हो सकता है जिससे मानसिक चिंता बढ़ेगी. उदर विकार हो सकता है इसलिए खाने-पीने को लेकर विशेष सतर्क रहें. ऊं नमः शिवाय की एक माला जपने से और शिवजी को जल चढ़ाकर शुभफलों के लिए उनसे प्रार्थना करें तो लाभ होगा.

वृश्चिकः
यह सप्ताह उन्नति वाला रहेगा. इस सप्ताह में आपके कई कार्य बनेंगे या उनमें संभावना नजर आएगी. अभी आप जिस भी कार्य में बढ़ रहे हैं उसे उत्साह और मनोयोग से करते रहिए. तत्काल फल नहीं भी मिला हो तो जल्द ही मिलेगा क्योंकि आपकी साढ़ेसाती की दूसरी ढैय्या चल रही है. आपके धैर्य की परीक्षा हो रही है, भगवान का नाम लेकर बढ़ते रहिए, सफल होंगे. मंगलवार के बाद योग ज्यादा लाभदायक बन रहे हैं लेकिन आपकी अधीरता आपका नुकसान कर सकती है इसलिए धैर्य रखें और मानसिक तनाव न लें. विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा और शोधकार्य आदि के लिए समय अच्छा है. नौकरीपेशा लोगों के लिए भी अच्छे संकेत मिल रहे हैं. उनके कार्यों का श्रेय नहीं मिल रहा था तो अब स्थिति में सुधार होगा. लोगों को आपकी जरूरत महसूस होगी. सप्ताह के मध्य में व्यापारियों के लिए कोई यात्रा करनी पड़ेगी. हालांकि उन्हें यह अनावश्यक लगेगा किंतु वह आपके लिए अवसर है. छोड़िए मत पूरे हौसले के साथ जाइए. यदि न्यायालय संबंधी कोई कार्य लंबित है तो उसमें भी परिणाम सकारात्मक रहेगा. सप्ताह के अंत में वाहन खरीदने का भी योग है, शनिवार को मत खरीदिएगा क्योंकि आप पर साढ़ेसाती चाल रही है और शनिवार को लोहा दान करते हैं घर नहीं लाते. प्रोफेशनल कार्यों में जुटे लोगों के लिए भी समय लाभ का है. व्यस्तता और घरेलू पक्ष से कुछ तनाव हो सकता है. इसका ध्यान रखें. घुटने और पीठ में दर्द की भी परेशानी हो सकती है. दांपत्य जीवन मधुर रखें. कोई मानसिक बोझ न लें. प्रतिदिन हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें.

धनुः
चंद्रमा का गोचर आपकी राशि में है जो सब ओर से सुख-सफलता का संयोग पैदा करता रहेगा. आपको उन अवसरों को पहचानना है और कार्य करना है. शुभचिंतकों को कठोर वाणी से कष्ट न पहुंचाएं. हृदय बड़ा करें और क्षमा मांगने में पहल करें तो कार्य तेजी से बनेंगे. आपके कई पुराने रूके हुए कार्यों में तेजी दिखेगी. नौकरीपेशा लोगों से अधिकारी प्रसन्न होंगे, सम्मान भी मिलेगा. आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार के संकेत है. गृह-निर्माण आदि कार्यों में रूचि होगी या जमीन-जायदाद की खरीद हो सकती है. सप्ताह के अंत में आपको किसी धार्मिक यात्रा पर जाने का सौभाग्य मिल सकता है अथवा धर्म के किसी कार्य में सक्रियता होगी. शुक्रवार और शनिवार आपके लिए विशेष दिन होंगे. उस दिन कुछ अच्छी सूचना मिलने से आत्मविश्वास बढ़ेगा. व्यापारियों के लिए लाभ के अवसर बन रहे हैं. पठ—पाठन के कार्यों में जुटे लोगों के लिए भी समय अच्छा है. विवाहित लोगों का जीवनसाथी के पक्ष से मन प्रसन्न रहेगा. अविवाहितों या विवाह के इच्छुक लोगों को कोई रिश्ता या प्रेम संबंध भी जीवन में आने वाला है. ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय की एक माला प्रतिदिन जपें तो सौभाग्य में वृद्धि होगी.

मकरः
आपके लिए यह सप्ताह मिले-जुले फल वाला रहेगा. सप्ताह के आरंभ में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा. आपके विरोधी आप पर हावी होने का प्रयास कर रहे हैं और उन्हें आंशिक रूप से सफलता भी मिल रही है परंतु चिंता की कोई बात नहीं, बुधवार खत्म होते-होते सब बदलने लगेगा. मित्रों का सहयोग मिलने से कई दिक्कतें अपने आप सुलझती नजर आएंगी. नौकरीपेशा लोगों के लिए नौकरी में परिवर्तन का योग है. शुक्रवार और शनिवार को परिवार में प्रसन्नता का माहौल रहेगा. वह कुछ पुराने मित्रों से मेल-मिलाप या किसी उत्सव आदि के कारण भी हो सकता है. व्यापारियों को इस दिन कुछ नए प्रोजेक्ट मिलेंगे या कोई नया व्यापारिक समझौता हो सकता है. शिक्षा के कार्य में बाधा आएगी. सर्दी-जुकाम या गले में इंफेक्शन की परेशानी हो सकती है. प्रेम संबंधों में तनाव आएगा. दांपत्य जीवन में भी खींचतान होने वाली है इसलिए विशेष रूप से सजग रहें. शिवजी को बेलपत्र एवं जल चढ़ाएं.

कुंभः
यह सप्ताह आपके लिए अच्छा बीतेगा. कुछ ऐसे कार्य होंगे जो लाभकारी सिद्ध होंगे. आपकी योजनाओं में लगातार फेर-बदल हो रही है इससे आप थोड़े व्यथित होंगे लेकिन चिंता की बात नहीं है. यह बदलाव आगे जाकर लाभदायक साबित होने वाला है. आप अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए कुछ प्रयास को तत्पर हैं, यह अच्छा संकेत है. आपको इससे लाभ होने वाला है. आपके प्रयास विरोधियों को परेशान करने वाले हैं जिससे आपका आत्मबल बढ़ेगा. विद्यार्थियों के लिए भी समय अच्छा है. सफलता मिलेगी. पेट में कुछ परेशानी हो सकती है. कारोबारियों के लिए सुझाव है कि शनिवार और रविवार को कुछ धन आता दिखेगा लेकिन उसके लेन-देन में बहुत सावधानी रखें. सप्ताह के आरंभ में तो लेन-देन से बचें तो बेहतर है, सप्ताह का अंत इस काम के लिए सही है. प्रेम संबंधों में मधुरता बनी रहेगी. विवाहित लोगों का दांपत्य जीवन सुखकर होगा. हनुमत आराधना करें तो सौभाग्य में वृद्धि होगी.

मीनः
आपके लिए यह सप्ताह मिले-जुले फल वाला रहेगा. कुछ चीजों में बहुत सफलता मिलेगी तो कुछ कार्यों में अनावश्यक विध्न आएंगे. पहले से चली आ ही कोई समस्या जिसने आपको चिंता में डाल रखा था, वह सुलझने वाली है. संतान पक्ष से कोई शुभ समाचार मिलेगा या संतान का योग है. बुध के नीच का होने के कारण आपमें भ्रम की स्थिति ज्यादा है. निर्णय करने में कठिनाई हो रही है. निर्णय करने में जहां तक संभव हो अपने विवेक का प्रयोग करें. किसी के सामने अपनी चिंता प्रकट न करें उसका लाभ दूसरे उठा सकते हैं. घरेलू कार्यों में भी आपकी व्यस्तता रहेगी. व्यापारियों के लिए कोई व्यापारिक यात्रा हो सकती है. सप्ताह का अंत व्यापार कार्यों के लिए कठिनाई भरा रहेगा, कुछ हानि भी हो सकती है. पत्नी के व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने से रिश्ते थोड़े असहज होंगे लेकिन इसे ग्रहों का योग समझकर सुलझाने की कोशिश करें. आग में घी न डालें. जिनके प्रेम संबंध चल रहे हैं उसमें थोड़ी परेशानी है. विवाह के इच्छुक लोगों को विवाह का प्रस्ताव भी मिलने वाला है. ऊँ नमो भगवतो वासुदेवाय का जाप प्रतिदिन एक माला करें.

प्रस्तुतकर्ताः
डॉ. नीरज त्रिवेदी, ज्योतिषाचार्य, पीएचडी
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

कैसा रहेगा आपका यह सप्ताहः साप्ताहिक राशिफल (06 अप्रैल से 12 अप्रैल)

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मेषः
आपके लिए यह बहुत आनंद और उल्लास से भरा हो सकता है. आपको अपनी प्रतिभा और क्षमता के प्रदर्शन के अवसर मिलेंगे, सराहना भी होगी. कारोबार के लिए भी समय अच्छा है. धन का आगमन होगा. कहीं कोई पैसा रूका हुआ है तो वह प्राप्त हो सकता है, प्रयास करें. कोई लाभदायक व्यावयासिक यात्रा हो सकती है. सप्ताह के मध्य में जमीन-मकान आदि की खरीद हो सकती है. प्रॉपर्टी का कारोबार करने वालों के लिए लाभ हो सकता है. सप्ताह के मध्य तक आपको स्वास्थय में थोड़ी परेशानी हो सकती है. इसका ध्यान रखें, खासकर खाने-पीने में. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे लोगों समय अच्छा है. सप्ताह के अंत में यात्रा हो सकती है. संतान के पक्ष से कोई अच्छी खबर मिल सकती है. दांपत्य जीवन बहुत सुखद रहेगा. उत्साह के बीच आपकी भागदौड़ बहुत होगी और चोट-चपेट लग सकती है इसलिए सावधान रहे. हनुमत आराधना करें.

वृषः
सप्ताह के शुरुआत में स्वास्थ्य थोड़ा ढ़ीला रहेगा. छोटी-मोटी चीजों के लिए आपकी बेवजह की भागदौड़ हो सकती है. धन अर्जन के लिए भागदौड़ तो होगी लेकिन धन का लाभ भी होगा. नौकरीपेशा लोगों को सप्ताह के मध्य में विशेषरूप से सावधान रहने की जरूरत है. अधिकारियों के साथ कोई अनबन हो सकती है जिसका आपको नुकसान हो सकता है. इसलिए जो जिम्मेदारी दी जा रही हैं उसे न केवल स्वीकारें बल्कि उसपर ध्यान से कार्य करें. नौकरी को लेकर तनाव रहेगा. आपकी परिवार में भी जिम्मेदारी बढ़ने वाली है. सप्ताह के अंत में व्यापारियों को लाभ का योग है. विद्यार्थियों के लिए समय संघर्ष से भरा है. घर-परिवार के किसी सदस्य की बीमारी के कारण आपको भागदौड़ हो सकती है. दांपत्य जीवन में सहयोग मिलेगा लेकिन प्रेम संबंधों के लिए समय अच्छा नहीं है. सप्ताह के अंत में सर्दी या ज्वर आदि की समस्या हो सकती है. प्रतिदिन एक माला ऊं नमः शिवाय का जप करें.

मिथुनः
यह समय आपके लिए मिले-जुले फल वाला है. रूके हुए धन का आगमन के योग हैं. व्यापार-कारोबार में जुड़े लोगों के लिए विशेष सावधानी की जरूरत है क्योंकि जहां पिछले धन के प्राप्त होने का योग है वहीं कुछ गबन आदि का भी संकेत है इसलिए लेन-देन में ज्यादा सावधानी की जरूरत है. बुधवार से कारोबार में सुधार होगा. पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण आप मानसिक तनाव में होंगे इस कारण आपका काम प्रभावित हो रहा है. इसका ध्यान रखें. दांपत्य जीवन ठीक-ठाक ही गुजरेगा लेकिन प्रेम संबंधों में तनाव आने वाला है. विद्यार्थियों के लिए समय अच्छा है. यात्रा भी हो सकती है. सप्ताह के अंत में स्थान परिवर्तन का योग है. छोटी यात्रा हो सकती है. पैर में दर्द की शिकायत रहेगी. सप्ताह के अंत में ससुराल पक्ष खासकर को लेकर कुछ चिंता हो सकती है. गणपति स्तोत्र का पाठ करें. गणेशजी को दूर्वा चढ़ाएं.

कर्कः
आपके लिए यह सप्ताह प्रसन्नताभरा रहेगा. कई कार्य बनेंगे, तेजी आएगी. स्वास्थ्य अच्छा रहेहा. मन प्रसन्न रहेगा. व्यापार में भी लाभ है. आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी. धन आगमन के नए अवसर बनते दिखेंगे. धर्मकार्य में रूचि रहेगी. कोई तीर्थयात्रा का कार्यक्रम बन सकता है. सप्ताह के मध्य में कोई नया प्रेम संबंध स्थापित हो सकता है. विवाहित लोगों का दांपत्य जीवन सुखद रहेगा. जो लोग विदेश यात्रा की योजना बना रहे थे उनके लिए विदेश यात्रा का प्रबल योग बना है. संतान पक्ष से कोई अच्छी खबर रहेगी. विद्यार्थियों के लिए समय बहुत अच्छा है. किसी प्रतियोगिता में सफलता मिल सकती है. फेफड़े में संक्रमण की शिकायत हो सकती है. कफ आदि से पीड़ा होगी. शिवजी को जल चढ़ाएं और हल्दी अर्पण करें.

सिंहः
सप्ताह मिला-जुला फल वाला रहेगा. आपकी जिम्मेदारियां बढ़ेंगी लेकिन इस कारण व्यर्थ में परेशान या हड़बड़ी में न रहें. सप्ताह की शुरुआत में स्वास्थ्य थोड़ा मध्यम रह सकता है. शरीर में पीड़ा रहेगी लेकिन सप्ताह के मध्य से स्थितियां सुधरेंगी. व्यापार के लिए भी समय अच्छा ही है परंतु लेन-देन से बचें या विशेष सावधानी रखें. परिवार में कुछ विवाद की स्थिति खड़ी हो रही है लेकिन इसे आराम से हल करने की कोशिश करें अन्यथा भविष्य में क्षति होगी. विद्यार्थियों के लिए समय बहुत अच्छा है. प्रेम संबंध मधुर रहेंगे. विवाहित लोगों का दांपत्य सुख अच्छा है. परिवार के साथ समय बिताने का अवसर मिलेगा. उसका प्रयोग भविष्य की योजनाएं बनाने के लिए करें. त्वचा की परेशानी हो सकती है इसका ध्यान रखें. सूर्यदेव को प्रतिदिन जल दें.

कन्याः
यह सप्ताह आपके लिए अनुकूल फल वाला ही रहेगा. कार्यों में आपकी बहुत व्यस्तता रहेगी लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों की अवदेखी न करें. घर-परिवार में खुशी का माहौल रहेगा आप भी शामिल हों. किसी करीबीजन के स्वास्थ्य को लेकर चिंता होगी. नौकरीपेशा लोगों को सप्ताह के मध्य में अधिकारियों के सहयोग से काम बनेंगे. आपकी प्रशंसा भी हो सकती है. वेतन में वृद्धि या प्रमोशन भी मिल सकता है. कोई छोटी यात्रा भी हो सकती है. विद्यार्थियों के लिए समय बहुच अच्छा है, सफलता मिलेगी. दांपत्यजीवन मधुर रहेगा. प्रेम संबंधों के लिए समय अनुकूल. सप्ताह के अंत में पेट या छाती में कोई परेशानी हो सकती है. पीने के पानी पर विशेष ध्यान दें. गणपति स्तोत्र का पाठ करें.

तुलाः
यह सप्ताह आपके लिए कुल मिलाकर अच्छा ही रहने वाला है. समय अनुकूल ही है पर स्वास्थ्य में दिक्कत आएगी. उदर रोग हो सकता है या कोई चोट-चपेट लग सकती है. इसलिए खाने-पीने पर भी ध्यान दें साथ ही गाड़ी चलाते समय या सड़क पर चलते समय भी बहुत सावधान रहें. आपका कोई पुराना धन कहीं रुका हुआ है तो वह धन वापस मिल सकता है. कुछ पुराने मित्रों के साथ मुलाकात हो सकती है. कोई व्यावसायिक यात्रा हो सकती है. व्यापार का समय तो अच्छा बस लेन-देन को लेकर विवाद की आशंका है इसलिए खरा काम करें. कोई छोटी यात्रा हो सकती है. प्रॉपर्टी के काम में लाभ हो सकता है. विद्यार्थियों के लिए समय अच्छा है. प्रेम संबंध औऱ दांपत्य संबंध दोनों ही अच्छे रहेंगे. शादी योग्य लोगों के लिए रिश्ते आएंगे या विवाह पर चर्चा हो सकती है. नौकरीपेशा लोगों को प्रमोशन या वेतन में वृद्धि हो सकती है. ऊं नमः शिवाय की एक माला रोज जपें. शिवजी को बेलपत्र चढ़ाएं.

वृश्चिकः

आपके लिए समय ठीक-ठाक है. स्वास्थ्य को लेकर कोई लापरवाही न करें, इस कारण मानसिक तनाव हो सकता है. व्यापार-व्यवसाय में किसी पर आंख मूंद कर भरोसा न करें. कोई व्यापारिक समझौता करने से पहले अच्छे से परख लें. यदि कोई घर या भूमि की खरीद की दिशा में प्रयासरत हैं तो उसमें बात आगे बढ़ेगी. आपने पुराना कोई काम ठान रखा है तो उसे मन लगाकर आगे बढ़ाएं, लाभ हो सकता है. पठन-पाठन आदि के कार्य से जुड़े लोगों को सप्ताह के मध्य में लाभ होगा. विद्यार्थियों को मेहनत से पीछे नहीं हटना है. आपके शत्रु भी सक्रिय हैं इसलिए शत्रुपक्ष को लेकर भी विशेष सतर्क रहें. सप्ताह के अंत में प्रेम संबंधों में तनाव आएगा. दांपत्य जीवन सुखी रहेगा. परिवार में कोई मांगलिक कार्य की तैयारी हो सकती है. किसी भी कार्य को हाथ में लिया है तो उसे मनोयोग से पूरा करने का प्रयास करेंगे, छोटी-मोटी उलझनें आएंगी लेकिन आपको लाभ होगा. उदर विकार हो सकता है. हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का नियमित पाठ करें.

धनुः
आपके लिए समय मिला-जुला रहेगा. खर्च बढ़ने के कारण मानसिक तनाव रहेगा. आपको अपने तनाव पर नियंत्रण के लिए विशेष प्रयास करने चाहिएं अन्यथा परेशानी बढ़ सकती है. अपने खर्चों पर लगाम रखें किसी को उसके लिए दोष न दें. नौकरीपेशा लोगों को सुझाव है कि अधिकारियों और सहकर्मियों के साथ संबंध मधुर रखने पर ध्यान दें. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए समय अच्छा है. व्यापार के लिए समय अच्छा है. कुछ नया काम शुरू करने की योजना बनेगी और लाभ भी होगा. सप्ताह के मध्य में व्यावसायिक यात्रा हो सकती है. आपको कुछ नई जिम्मेदारियां मिल सकती हैं. पेट में कुछ परेशानी के कारण आपके कामों में अड़चन आ सकती है इसलिए खाने-पीने का विशेष ध्यान रखें खासकर यदि यात्रा का कार्यक्रम बना हो. दांपत्य संबंध अच्छा रहेगा लेकिन संतान के स्वास्थ्य को लेकर चिंता रहेगी. ऊं नमो भगवते वासुदेवाय का जप करें.

मकरः
आपके लिए समय अच्छा है. आत्मविश्वास से भरपूर रहेंगे. आपके कई कार्यों में तेजी आएगी और कई नए काम आरंभ हो सकते हैं. राजनीतिज्ञों के लिए समय खासतौर से अच्छा है. सप्ताह के मध्य में भागदौड़ ज्यादा हो सकती है. सप्ताह के मध्य में उलटा-सीधा खाने-पीने के कारण स्वास्थ्य खराब होगा. पैरों में दर्द की शिकायत होगी. विद्यार्थियों को पढ़ाई के क्षेत्र में काफी संघर्ष करना पड़ेगा. आशा से कम सफलता मिलेगी. छोटी-मोटी जरूरी यात्रा हो सकती है लेकिन स्वास्थ्य के कारण विध्न आएगा. व्यापारियों के लिए समय अच्छा है. कोई व्यावसायिक यात्रा हो सकती है. विवाह के इच्छुक लोगों को सप्ताह के अंत में विवाह आदि के प्रस्ताव मिलेंगे. दांपत्य जीवन मधुर रहेगा. प्रेम संबंधों में उतार-चढ़ाव होगा. हनुमत आराधना करें और शनिवार मंगलवार को हनुमान जी के दर्शन को मंदिर जरूर जाएं.

कुंभः
यह सप्ताह मिले-जुले फल वाला रहेगा. सप्ताह के आरंभ में ही कोई झगड़ा-विवाद हो सकता है. कोई चोट लग सकती है. इस कारण आपको आर्थिक नुकसान भी होने वाला है इसलिए बहुत सचेत रहें. सप्ताह में आपको धन की आमदनी तो होगी लेकिन फिजूलखर्ची भी साथ-साथ चलेगी इसलिए मन खिन्न होगा. खर्चने में सावधानी रखें. व्यापार के लिए समय मध्यम है. यात्रा का योग है. स्थान परिवर्तन भी हो सकता है. नौकरीपेशा लोगों को बहुत सावधानी की जरूरत है. आप पर अधिकारियों की नजर है कोई चूक न करें वरना पछताना पड़ेगा. आलस्य के कारण आप दिए गए कार्यों की अनदेखी कर रहे हैं इसलिए भी संकट पैदा होगा. दांपत्य जीवन अच्छा रहेगा. प्रेम संबंधों में तनाव हो सकता है. सप्ताह के अंत में हडडी या जोड़ों के दर्द से परेशान होंगे. हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का बिना चूके प्रतिदिन पाठ करें.

मीनः
यह सप्ताह आपके लिए मधुर रहेगा. स्वास्थ्य अच्छा रहेगा. जमीन-जायदाद की खरीद बिक्री में तरक्की हो सकती है. धन का आगमन होने की संभावना है. घर-जमीन की खऱीद-बिक्री हो सकती है. कोई छोटी-मोटी यात्रा हो सकती है. व्यापार को लेकर कोई यात्रा हो सकती है. भाइयों के साथ संबंध अच्छे रखने का प्रयास करें. सप्ताह के मध्य में माता के स्वास्थ्य के कारण चिंता होगी. पठन-पाठन के कार्यों से जुड़े लोगों को कोई यात्रा हो सकती है. प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता मिलेगी. पारिवारिक जीवन अच्छा रहेगा. भाग्य आपका साथ देगा. उत्साह के साथ हर कार्य पूर्ण होंगे. पीने के पानी का ख्याल रखें. ऊँ नमो भगवतो वासुदेवाय का जाप प्रतिदिन एक माला करें.

प्रस्तुतकर्ताः
डॉ. नीरज त्रिवेदी, ज्योतिषाचार्य, पीएचडी
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

समुद्र लांघने उड़े हनुमान, देवों ने परखा बल-ज्ञानः देवों की दूत सुरसा ने ली हनुमानजी की परीक्षा, सुंदरकांड का प्रसंग

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अंगद के नेतृत्व में सीताजी को खोजने निकली वानरों की टोली को जटायु के भाई गिद्धराज संपाति ने बताया कि रावण देवी को सुमद्र पार स्थित लंका ले गया है.

संपाति ने लंका की दिशा और रावण के महल की जानकारी दी. लेकिन 100 योजन लंबे समुद्र को लांघा कैसे जाए! अंगद ने सभी से उनकी छलांग लगाने की क्षमता पूछी.

कोई 30 योजन तक तो कोई 50 योजन तक छलांग लगाने में समर्थ था. रीक्षराज जामवंत ने बताया कि वह 90 योजन तक की छलांग लगा सकते हैं.

अंगद ने कहा- मैं 100 योजन तक छलांग लगाकर समुद्र पार तो कर लूंगा, लेकिन लौट पाऊंगा कि नहीं, इसमें संशय है. बिना लौटे तो बात बनने वाली नहीं थी.

तब जामवंत ने हनुमानजी को उनके पराक्रम का स्मरण कराया. जामवंत बोले- हनुमानजी आपने बचपन में छलांग लगाकर आकाश में स्थित सूर्य को पकड़ लिया था, फिर 100 योजन का समुद्र क्या है?

जामवंत द्वारा अपनी शक्तियों का स्मरण कराए जाने के बाद हनुमानजी समुद्र लांघने के लिए उड़े.

उन्हें पवन वेग से लंका की ओर बढ़ता देख देवताओं ने सोचा कि यह रावण जैसे बलशाली की नगरी में जा रहे हैं. इसलिए इनके बल-बुद्धि की विशेष परीक्षा करनी आवश्यक है.

देवगण समुद्र में निवास करने वाली नागों की माता सुरसा के पास गए उनसे बजरंग बली के बल-बुद्धि की परीक्षा लेने का निवेदन किया.

सुरसा राक्षसी का रूप धारण कर हनुमानजी के सामने जा खड़ी हुई और बोली- सागर के इस भाग से जो भी जीव गुजरे मैं उसे खा सकती हूं. ऐसी व्यवस्था देवताओं ने मेरे लिए की है.

आज देवताओं ने मेरे आहार के रूप में तुम्हें भेजा है. मैं तुम्हें खा जाउंगी. ऐसा कहकर सुरसा ने हनुमानजी को दबोचना चाहा.

हनुमानजी ने कहा-माता! इस समय मैं श्रीराम के कार्य से जा रहा हूँ. कार्य पूरा करके मुझे लौट आने दो. उसके बाद मैं स्वयं ही आकर तुम्हारे मुँह में समा जाऊंगा.

हनुमानजी ने सुरसा से बहुत विनती की लेकिन वह मानने को तैयार न थी. हनुमान ने अपना आकार कई सौ गुना बढ़ाकर सुरसा से कहा- लो मुझे अपना आहार बनाओ.

सुरसा ने भी अपना मुंह खोला तो वह हनुमानजी के आकार से बड़ा हो गया. हनुमानजी जितना आकार बढ़ाते, सुरसा उससे बड़ा मुंह कर लेती.

हनुमानजी समझ गए कि ऐसे तो बात नहीं बनने वाली. उन्होंने अचानक अपना आकार बहुत छोटा किया और सुरसा के मुँह में प्रवेश करके तुरंत बाहर आ गए.

सुरसा बजरंगबली की इस चतुराई से प्रसन्न हो गई. वह अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुईं और हनुमानजी को आशीर्वाद देकर उनकी सफलता की कामना की.

समुद्र ने रामभक्त को बिना विश्राम लगातार उड़ते देखा तो उसने अपने भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा कि थोड़ी देर के लिए ऊपर उठ जाए ताकि उसकी चोटी पर बैठकर हनुमानजी थकान दूर कर लें.

समुद्र के आदेश से प्रसन्न मैनाक रामभक्त की सेवा का पुण्य कमाने के लिए हनुमानजी के पास गया अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम का निवेदन किया.

हनुमानजी मैनाक से बोले-श्रीराम का कार्य पूरा किए बिना विश्राम करने का कोई प्रश्र ही नहीं उठता. उन्होंने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया और आगे चल दिए.

लंका पहुंचते ही हनुमानजी का सामना लंका की रक्षक लंकिनी से हुआ. सुंदरकांड के ये सब प्रसंग भक्ति रस से सराबोर हैं.

सुंदरकांड में हनुमानजी की अपरिमित शक्तियों का वर्णन है और वे प्रभु के संकटमोचक बनते हैं.

कहते हैं जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में सुंदरकांड का एक बार भी पाठ न किया हो उसे तब तक मुक्ति नहीं मिलती जब तक वह इसे सुन न ले.

।।सियापति रामचंद्र की जय।। ।।पवनसुत हनुमान की जय।।

संकलन व संपादन- प्रभु शरणम्

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प्रभु हो जाएं आयुष्मान, सिंदूर में सन गए हनुमानःमंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने की कथा.

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एक बार माता सीता स्नान करने के बाद शृंगार कर रही थीं. तभी बजरंग बली वहां आ पहुंचे.

हनुमानजी को माता ने अशोक वाटिका में अपने पुत्र का दर्जा दिया था इसलिए उनके लिए कहीं आने जाने पर रोक-टोक न थी.

माता ने सभी शृंगार के बाद अपनी मांग में सिंदूर लगाया. हनुमानजी ने देखा कि जब माता सिंदूर लगा रही थीं, उस समय उनके चेहरे की चमक जितनी अधिक थी उतनी किसी अन्य आभूषण पहनते समय नहीं थी.

हनुमानजी को आश्चर्य हुआ. आखिर इस रंगीन चूर्ण में ऐसा क्या है जो माता इसे धारण करते समय दिव्य रत्नों वाले आभूषणों से भी ज्यादा इतरा रही हैं.

उन्होंने यह प्रश्न माता से पूछ भी लिया. सीताजी हंसने लगीं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या उत्तर दें.

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भक्तवत्सल भगवान श्रीराम ने सारा पुण्य कर दिया पवनपुत्र के नाम

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भगवान श्रीराम समुद्र पर पुल बांध रहे थे तब उन्होंने सभी विध्नों का नाश करने के लिए गणेशजी की स्थापना कर नल के हाथों से नवग्रहों की नौ प्रतिमाएं स्थापित कराईं.

श्रीराम को रामेश्वरम में (जहां भूमि से सागर का संयोग होता है) अपने नाम पर एक शिवलिंग स्थापित करने की इच्छा हुई.

उन्होंने हनुमानजी को बुलाकर कहा- आप काशी चले जाइए और भगवान शंकर से मांगकर एक शिवलिंग ले आइए. लेकिन ध्यान रहे शुभ मुहूर्त बीतने न पाए.

हनुमानजी उड़े और क्षण भर में काशी पहुंच गए. शिवजी बोले- मैं खुद ही दक्षिण की ओर जाने की सोच रहा था क्योंकि विंध्याचल को नीचा करने के लिए अगस्त्यजी यहां से चले गए हैं लेकिन उन्हें मेरे बिना मन नहीं लग रहा. वह मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं.

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देवों ने दिया वरदान, अतुलित बलधाम हुए हनुमान, हनुमानजी को मिले कौन से वरदान व शापः हनुमान कथा-3

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आपने हनुमान कथा के दो खंडों में अब तक शिवजी के अंश के श्रीराम कार्य के लिए स्वर्ग की अभिशप्त अप्सरा के शरीर से हनुमान रूप में जन्म लेने और हनुमानजी के राहु से युद्ध और इंद्र के प्रहार से मूर्च्छा की कथा पढ़ी.

पवनदेव द्वारा वायु संचार रोकने से देवताओं की विवशता और ब्रह्मा द्वारा हनुमान अवतार का प्रयोजन बताने की कथा पढ़ी. अब पढ़ें हनुमानजी कैसे बने अतुलित बलशाली.

ब्रह्मदेव द्वारा हनुमान अवतार का प्रयोजन बताने के बाद सभी देवों ने हनुमानजी की शक्तियां बढ़ाने के लिए उन्हें वरदान दिया.

इंद्र ने कहा- मेरे वज्र से इनका हनु टूटा है. इसलिए इन्हें हनुमान कहा जाएगा. हनुमानजी पर मेरे वज्र का कभी असर नहीं होगा. कुबेर ने हनुमानजी को गदा और यक्षों की मित्रता दी.

सूर्यदेव ने अपने तेज का सौंवा हिस्सा हनुमानजी को दिया. सूर्यदेव ने रूप-आकार बदलने का आशीर्वाद दिया और गुरू बनकर हनुमानजी को संपूर्ण शास्त्रों का ज्ञान देना भी स्वीकार किया.

वरुणदेव ने आशीर्वाद दिया कि हनुमानजी वरूणपाश और जल के भय से मुक्त रहेंगे. विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि हनुमानजी पर उन दिव्यास्त्रों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जिनका निर्माण मैंने किया है.

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हनुमानजी का जन्म, राहु से युद्ध, इंद्र का हनुमानजी पर वज्र प्रहारः हनुमान जन्म कथा भाग-2

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पिछली कथा में आपने पढ़ा- शिवजी ने दसानन वध में सहायता करने और श्रीराम की सशरीर सेवा के लिए हनुमान अवतार लेने का निर्णय किया. जैसे आज चंद्रग्रहण हैं. राहु ग्रसने को आतुर है, वैसे ही राहु ने एकबार सूर्यदेव को ग्रसने की कोशिश की थी और पवनसुत ने उसे खूब मजा चखाय़ा था.

शिवजी ने अपने एकादश रूप को स्वर्ग की अभिशप्त अप्सरा पुंचिकस्थला जो वानर रूप में अंजना बन गई थीं, उसके गर्भ से जन्म लेने की युक्ति निकाली.

अंजना और केसरी में बड़ा प्रेम था लेकिन उनके कोई संतान न थी. नारदजी ने उन्हें बताया था कि उनके घर में दिव्य पुत्र का जन्म होने वाला है.

शिवजी को अंजना के घर में अवतार लेना था. उन्होंने पवनदेव को बुलाया और अपना दिव्य पुंज देकर उन्हें आदेश दिया कि इस पुंज को अंजना के गर्भ में स्थापित कर दें.

एक दिन अंजना मनुष्य रूप में में विचरण कर रही थीं उस समय तेज हवा के झोंके से उन्हें यह महसूस हुआ कि कोई उन्हें स्पर्श कर रहा है.

वह बेचैन हो गईं. उसी समय पवनदेव ने शिवजी के दिव्य पुंज को कान के रास्ते अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया. व्याकुल अंजना को सांत्वना देते हुए पवनदेव ने आकाशवाणी की.

पवनदेव ने कहा, ‘देवी! मैंने बिना आपका पतिव्रत भंग किए आपके गर्भ में एक ऐसा विलक्षण तेज स्थापित कर दिया है जो पुत्र रूप में जन्म लेने के बाद अतुलित बलशाली और विलक्षण बुद्धि वाला होगा. मैं उसकी रक्षा करूंगा और वह श्रीराम का परमभक्त होगा’

शिवजी द्वारा दायित्व पूरा करने के बाद पवनदेव कैलाश पहुंचे. शिवजी ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा. पवनदेव ने स्वयं को अंजना के पुत्र का पिता कहलाने का सौभाग्य मांगा. हनुमानजी को शंकर सुवन केसरीनंदन, अंजनीपुत्र और पवनसुत कहलाते हैं.

चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार को रामनवमी के तुरंत बाद अंजना के गर्भ से भगवान शिव वानर रूप में अवतरित हुए. शिवजी का अंश होने के कारण अति तेजस्वी होना स्वाभाविक था. पवनदेव ने हनुमानजी को उड़ने की शक्ति प्रदान की थी.

एक दिन अंजना हनुमानजी को अकेला छोड़कर कहीं गईं थीं. हनुमानजी को बड़ी भूख लगी. उन्होंने इधर-उधर खाने की चीज तलाशी लेकिन कुछ नहीं मिला.

अंत में उनकी दृष्टि सूर्य पर पड़ी. प्रातःकाल का समय था. सूर्य की लालिमा देखकर हनुमानजी को लगा कि आसमान में कोई स्वादिष्ट फल लटक रहा है.

वह फल तोड़ने के लिए आकाश में उड़े. देवता, दानव, यक्ष सभी हनुमानजी को सूर्य की ओर बढ़ता देख आश्चर्य में थे. पवनदेव की भी नजर पड़ी.

वह भी अपने पुत्र के पीछे-पीछे भागे. सूर्यदेव के प्रचंड ताप से हनुमान कहीं जल न जाएं इस आशंका में पवनदेव उनपर हिमालय की शीतल वायु छोड़ते रहे.

सूर्यदेव ने देखा कि स्वयं भगवान शिव वानर बालक के रूप में आ रहे हैं तो उन्होंने भी अपनी किरणें शीतल कर दीं. बाल हनुमान सूर्य के रथ पर पहुंच गए और उनके साथ खेलने लगे.

सूर्यदेव भी इससे अभिभूत थे. उस दिन ग्रहण लगना था. समुद्र मंथन के दौरान छल से अमृत पीकर अमर हुए दानव राहु को इंद्रदेव ने महीने में एक बार अमावस्या को सूर्य को ग्रसने का अधिकार दिया था.

उस दिन राहु को सूर्य को ग्रसना था. राहु सूर्य को ग्रसने के लिये आया. राहु ने देखा कि सूर्यदेव के रथ पर एक वानर बालक सवार है. वह हनुमानजी को देखकर आश्चर्य में पड़ा.

राहु ने जैसे ही सूर्य को ग्रसने की कोशिश की, हनुमानजी ने राहु को पकड़ लिया और एक मुक्का जड़ दिया. रोता-चिल्लाता राहु इंद्र के पास भागा इंद्र से पूछा कि क्या आपने सूर्य को ग्रसने का अधिकार किसी और को दे दिया है?

इंद्र ने इंकार किया तो राहु ने सारी बात कह सुनाई. इस बार राहु को सूर्य को ग्रसने में मदद करने के इंद्र भी साथ चले. दोबारा राहु को देखकर हनुमान राहु पर टूट पड़े और उसकी दुर्गति कर दी. राहु ने डरकर इंद्र को रक्षा के लिए पुकारा.

इंद्र को आता देख हनुमान राहु को छोड़कर इंद्र की ओर लपके. इंद्र को शिवजी के अवतार की जानकारी नहीं थी. इंद्र ने घबराकर हनुमानजी पर वज्र से प्रहार कर दिया. इससे हनुमान की हनु (ठुड्ढी) टूट गई और वह घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़े.

पवनदेव ने हनुमान को उठाया और शोक में खुद को एक गुफा में बंद कर लिया. उन्हें इंद्र पर बड़ा क्रोध आया. पवनदेव ने अपनी गति बंद कर दी.

पृथ्वी पर हवा चलनी बंद हो गई. हवा के अभाव में जीवों का दम घुटने लगा. देवता भी घबराए. इंद्र ब्रह्माजी के पास संकट से निकाले की गुहार लगाने पहुंचे.

ब्रह्माजी को सारी बात पता चली और वह सभी देवों के साथ उस गुफा में पहुंचे जहां पवनदेव मूर्च्छित हनुमानजी के साथ शोकग्रस्त बैठे थे. ब्रह्मदेव ने अपना हाथ फेर कर हनुमानजी के ऊपर पड़े वज्र के प्रभाव को समाप्त कर दिया. हनुमानजी उठ बैठे.

पवनदेव खुश हो गए और संसार में फिर से वायु संचार शुरु हुआ. ब्रह्माजी ने सभी देवताओं को हनुमानजी के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि इस अवतार का उद्देश्य क्या है. ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं को कहा कि सभी अपनी शक्तियों के अंश हनुमानजी को दें.

हनुमानजी को सभी देवताओं ने अपने-अपने अंश और तेज देकर अतुलित बलशाली बना दिया.(वायु पुराण की कथा)

किस देवता से हनुमानजी को क्या वरदान मिला और हनुमानजी को क्यों मिला एक शाप जो बाद में उनके लिए एक और वरदान साबित हुआ. हनुमानजी को मिले विभिन्न वरदानों और शाप की कथा, अगले पोस्ट में.

संकलन व संपादन: राजन प्रकाश

प्रभुभक्तों हम हिंदुत्व के सार को दुनियाभर में फैलाने के लिए प्रतिदिन भक्तिमय कथाएं ढूंढकर लाते हैं, पोस्ट करते हैं. प्रभुचर्चा को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने की मुहिम में आपका योगदान भी होना चाहिए. अनुरोध है कि प्रभुनाम प्रचार के लिए एप्प का लिंक अपने मित्रों के साथ Whatsapp पर शेयर करके उन्हें भी इन कथाओं का लाभ पहुंचाएं.

अप्सरा पुंचिकस्थला को वानरी होने का शाप, अंजना रूप में बनीं हनुमान की माताःहनुमान अवतार की कथा भाग-1

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कल शनिवार को हनुमानजी की जयंती है. कल चंद्रग्रहण भी है इस कारण मंदिर जाना या दिन में आरती-पूजा नहीं होगी किंतु ग्रहण काल में प्रभुनाम का यथासंभव स्मरण करना चाहिए. इसलिए हम दिनभर संकटमोचन हनुमानजी की वे कथाएं सुनेंगे जो हमेशा से सुनते-सुनाते रहे हैं.

त्रेतायुग अभी आरंभ नहीं हुआ था. भगवान विष्णु त्रेतायुग में शिवभक्त रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए श्रीरामअवतार लेने वाले थे. भगवान शिव ने कैलाश पर लंबी समाधि लगाई थी.

समाधि में लीन शिवजी अचानक आंखें बंद किए ही मुस्कुराने लगे. माता पार्वती शिवजी को समाधि में इतना प्रसन्न देकखर चौंकीं. वह समझ ही नहीं पा रही थीं कि महादेव समाधि में हैं या समाधि से बाहर आ चुके हैं.

महादेव ने आंखें खोलीं. देवी ने उनकी प्रसन्नता का कारण पूछते हुए कहा- देव आपको कभी समाधि में लीन होकर इतना आत्मविभोर होते नहीं देखा. कोई खास वजह है तो मुझे बताएं. आपकी प्रसन्नता का कारण जानने की बड़ी इच्छा हो रही है.

शिवजी ने बताया- मेरे इष्ट श्रीहरि का रामावतार होने वाला है. रावण के संहार के लिए प्रभु पृथ्वी पर अवतार ले रहे हैं. अपने इष्ट की सशरीर सेवा करने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा.

पार्वतीजी इस बात से तो प्रसन्न थीं कि महादेव को वह अवसर मिलने वाला है जिसकी उन्हें लंबे समय से प्रतीक्षा थी लेकिन देवी के मन में एक दुविधा थी जिससे वह थोड़ी चिंतित थीं. शिवजी ने उनकी अप्रसन्नता का कारण पूछा.

देवी ने बताया- स्वामी आपको तो अपने इष्टदेव का सशरीर सेवा का अवसर मिल जाएगा. मेरे इष्ट तो आप हैं. इस कारण आपसे मेरा बिछोह हो जाएगा इसलिए मैं चिंतित हूं. और रावण तो आपका परम भक्त है. क्या उसके विनाश में आप सहायता करेंगे?

देवी पार्वती की शंका का समाधान करते हुए शिवजी बोले- ‘बेशक रावण मेरा परमभक्त है, लेकिन वह आचरणहीन हो गया है. उसने अपने दस शीश काटकर मेरे दस रूपों की सेवा की है, परंतु मेरा एकादश रूप तो अभी भी रावण द्वारा नहीं पूजा गया.

शिवजी ने देवी को बताया- रावण संहार में श्रीराम की सहायता के लिए मैं दस रूपों में आपके पास रहूंगा और एकादश रुद्र के अंशावतार रूप में अंजना के गर्भ से जन्म लेकर रावण के विनाश में श्रीराम का सहायक बनूंगा.

महादेव के अपने पास मौजूद रहने का वचन पाकर देवी के मन का कष्ट दूर हुआ. देवी ने महादेव से पूछा- नाथ, वह सौभाग्यशाली अंजना कौन है जिसके शरीर से स्वयं सदाशिव अवतार लेने वाले हैं. आपने रुद्रावतार के लिए अंजना को क्यों चुना हैं?

महादेव ने पार्वती को कथा सुनाई. देवराज इंद्र की सभा में पुंचिकस्थला नाम की अप्सरा थी जिसे ऋषि श्राप के कारण पृथ्वी पर वानरी बनना पड़ा. शापग्रस्त होकर वह ऋषि के चरणों में गिर गई और क्षमा याचना करने लगी.

बहुत अनुनय विनय करने पर ऋषि का क्रोध समाप्त हुआ. उन्होंने कहा- शाप खत्म नहीं किया जा सकता, संशोधन किया जा सकता है. वानर रूप में रहते हुए भी अपनी इच्छा से जब भी चाहोगी मनुष्य रूप धारण करने में समर्थ रहोगी. मेरा शाप तुम्हारे लिए वरदान साबित होगा.

यह कथा सुनाकर महादेव ने कहा- पृथ्वी पर वानर रूप में आकर पुंचिकस्थला, वानरराज केसरी की पत्नी अंजना बनीं हैं. शाप को वरदान में बदलने के लिए मेरा अंशावतार अंजना के गर्भ से होगा जो श्रीराम की सेवा करेगा.(वायु पुराण की कथा)

अगले भाग में पढ़िए हनुमानजी का राहु से युद्ध और सभी देवों के वरदान से सर्वशक्तिमान होने का प्रसंग.

संकलन व संपादन: राजन प्रकाश

Davos: Everything You Need To Know About the World Economic Forum

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A small river named Duden flows by their place and supplies it with the necessary regelialia. It is a paradisematic country, in which roasted parts of sentences fly into your mouth.

Even the all-powerful Pointing has no control about the blind texts it is an almost unorthographic life One day however a small line of blind text by the name of Lorem Ipsum decided to leave for the far World of Grammar.

The Big Oxmox advised her not to do so, because there were thousands of bad Commas, wild Question Marks and devious Semikoli, but the Little Blind Text didn’t listen. She packed her seven versalia, put her initial into the belt and made herself on the way.

When she reached the first hills of the Italic Mountains, she had a last view back on the skyline of her hometown Bookmarksgrove, the headline of Alphabet Village and the subline of her own road, the Line Lane. Pityful a rethoric question ran over her cheek, then

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China TV Host Suspended Over Insulting James Navarro

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भगवती जगदंबिका द्वारा शुंभ के सेनापति धूम्रलोचन का वधः दुर्गासप्तशती छठा अध्याय

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ऊं नमश्चंडिकायैः नमः
छठा अध्याय

महर्षि मेधा ने कहा- देवी की बात सुनकर दूत क्रोध में भरा हुआ वहां से असुरेन्द्र के पास पहुंचा और सारा वृतांत कह सुनाया. दूत की बात सुनकर असुरेंद्र के क्रोध की सीमा न रही. उसने अपने सेनापति धूम्रलोचन को बुलाया.

उसने धूम्रलोचन से कहा- तुम अपनी सेना सहित वहां जाओ और उस दष्टा को केश पकड़कर घसीटते हुए मेरे पास लेकर आओ. यदि उसकर रक्षा के लिए कोई दूसरा खड़ा हो चाहे वह देवता, यक्ष या गंधर्व ही क्यों न हो, उसको मार डालना.

महर्षि मेधा ने कहा- शुम्भ के इस प्रकार आज्ञा देने पर धूम्रलोचन साठ हजार राक्षसों की सेना लेकर वहां पहुंचा और देवी को ललकारते हुए कहने लगा. तू अभी शुंभ-निशुंभ के पास चल. यदि तुम प्रसन्नतापूर्वक मेरे साथ नहीं चलोगी तो मैं तेरे केशों को पकड़कर घसीटता ले चलूंगा.

देनी बोली- असुरेंद्र का भेजा हुआ तेरे जैसा बलवान यदि बलपूर्वक मुझे ले जाएगा तो ऐसी दशा में मैं तुम्हारा कर ही क्या सकती हूं.

महर्षि मेधा ने कहा- ऐसा कहने पर धूम्रलोचन उसकी ओर लपका किंतु देवी ने अपनी हुंकार से ही उसे भस्म कर डाला. यह देखकर असुर सेना क्रुद्ध होकर देवी की ओर बढ़ी किंतु अंबिका ने उन पर तीखे बाणों शक्तियों तथा फरसों की वर्षा आरंभ कर दी. देवी का वाहन सिंह भी असुर सेना पर टूट पड़ा.

उसने कई को अपने पंजों से, कई को जबड़े से और कई को धरती पर पटककर उसका पेट चीरकर रक्त पीने लगा. इस तरह देवी के वाहन सिंह ने सारी सेना का नाश कर डाला.

शुंभ ने जब यह सुना कि देवी ने धूम्रलोचन असुर को मार डाला है और सेना का संहार कर दिया तो उसे बड़ा क्रोध आया. क्रोध से उसके होठ फड़फड़ाने लगे. उसने चंड-मुंड नामक असुरों को बुलाकर आज्ञा दी.

शुंभ ने कहा- हे चंड और हे मुंड तुम एक बड़ी सेना लेकर जाओ और देवी को बाल पकड़कर घसीटते हुए लेकर आओ. यदि उसको लाने में किसी प्रकार का संदेह हो तो उसका वध कर दो. जब वह दुष्टा और उसका सिंह मर जाएं तब भी बांधकर उसे लेकर आओ.

इस प्रकार Ÿश्रीमार्कं‡डेय पुराण में सावर्णि‡क म‹न्वं‹तर की कथा के अं‹तर्गत देवीमाहाˆम्य में छठा अध्याय पूरा हुआ.

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कल्याणकारी है महिषासुर मर्दिनी माता का छठा शक्तिस्वरूप कात्यायनी

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माँ दुर्गा के छठे रूप का नाम कात्यायनी है. कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि थे. उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए. कात्य द्वारा चलाए प्रसिद्ध कात्य गोत्र में ऋषि कात्यायन का जन्म हुआ.

कात्यायन ने भगवती को घोर तप से प्रसन्न किया और उनसे पुत्री रूप में अपने घर में जन्म लेने का वरदान लिया. माता ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली.

जब दैत्यराज महिषासुर का अत्याचार बहुत बढ़ गया तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ-साथ सभी देवों ने अपने-अपने तेज़ का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था.

देवी ने महर्षि कात्यायन को पुत्रीस्वरूपा होने का वरदान दिया था. इसलिए उन्होंने सबसे पहले कात्यायान को दर्शन दिए और कात्यायन ने उनकी पूजा की. देवी ने कात्यायन का मान रखते हुए पुत्री सृदृश कात्यायनी नाम स्वीकार किया.

देवी ने महिषासुर का वध किया. माता कात्यायनी कन्या स्वरूप में हैं. इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है. चार भुजाओं वाली माता का दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में है, नीचे का हाथ वरदमुद्रा में बांएं ऊपर वाले हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल का फूल है.

इनका वाहन सिंह है. माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं. भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा यमुना तट पर की थी. ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं.

आज के दिन साधक का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है. कात्यायनी मंत्र रोग-दोष दूसरे करने से लेकर कुंआरी कन्याओं के शीघ्र विवाह तक में प्रभावशाली सिद्ध होता है.

यदि कन्या के विवाह में विलंब आ रहा हो तो 21 दिनों में 41,000 बार कात्यायनी मंत्र का जप करने से विवाह की बाधा दूर होती है. इसकी विधि हम पहले भी बता चुके हैं. कन्या विवाह के लिए इस मंत्र का जप करना चाहिए-

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नंद गोपसुतं देवि पतिं मे कुरुते नमः॥

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जिस भक्ति में विनम्रता नहीं वह भक्ति नहीं भ्रम है, यमराज ने एक साधु को दिया डाकू की सेवा का दंडः प्रेरक कथा

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Yamraj
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एक साधु निर्जन स्थान पर आश्रम बनाकर रहते थे. उनके आश्रम में भक्तिभजन प्रवचन आदि चलते रहते थे. वहां पर भक्तों की आवाजाही लगी रहती थी.

साधु अपने अनुयायियों को ईश्वर में श्रद्धा रखने और बुराइयों से दूर रहने की सीख देते थे. उनके वचनों में एक आकर्षण था. भक्त भाव विभोर होकर उनके प्रवचन सुना करते थे.

आश्रम के पास एक जंगल में एक डाकू रहता था. उससे लोग बहुत डरते थे. उसकी एक खास बात यह थी कि वह सिर्फ अमीरों से धन लूटता था लेकिन गरीबों को कभी नहीं सताता था.

अजीब संयोग यह हुआ कि साधु और डाकू की मृत्यु एक ही दिन और एक ही समय पर हुई. मरने के बाद दोनों यमराज के दरबार में पहुंचे. वहां उन के कर्मों का बही खाता खुला.

बही-खाता देखने के बाद यमराज ने कहा- अब तुम्हारी किस्मत का फैसला होने वाला है. तुम्हें अपने बारे में कुछ विशेष कहना है तो कह सकते हो.
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