मैंने वहां गीता का पूरा ज्ञान सीखा. सुनते-सुनते गीता का प्रथम अध्याय मुझे कंठस्थ हो गया. इससे पहले कि मैं अन्य अध्याय सीख पाता एक बहेलिये ने वहां से चुराकर इन देवी को बेच दिया.

मैं अपने स्वभाववश इनको प्रतिदिन गीता के श्लोक सुनाता रहता हूं. वही पुण्य इन्होंने आपको दान किया और आप मानवरूप में आए.

श्रीहरि ने लक्ष्मीजी से कहा- देवी जो गीता का प्रथम अध्याय पढ़ता या सुनता है उसे भवसागर पार करने में कोई कठिनाई नहीं होती.

तो इस प्रकार भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता के विभिन्न अध्यायों को अपने शरीर का अंग मानते हुए बताया है कि गीता में साक्षात उनका वास है.

गीता को स्पर्श करने का अर्थ है आप श्रीनारायण के अंगों का स्पर्श कर रहे हैं. भगवान का स्पर्श करके सौंगंध लेने के बाद कोई असत्य नहीं कहेगा, इसी विश्वास के साथ गीता की सौगंध दी जाती है.

कर्म की व्याख्या करता सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है भगवद्गीता जो सिखाती है कि व्यवहार में मनुष्य का जीवन कैसा होना चाहिए. असत्य बोलने, लालच और मोह में पड़कर अपने निकटजनों को अनुचित सलाह देने और धर्म के विरूद्ध जाना मनुष्य का सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि पूरे कुल के नाश का कारण हो जाता है. यह सब सिखाती है गीता. ऐसे ग्रंथ से उत्तम और क्या होगा न्याय की सौगंध के लिए साक्षी रखने को.

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3 COMMENTS

  1. जय श्री राम, बहुत ही पुण्य का काम कर रहे है, सनातन धर्म को समझने के लिए और कलयुग के रोग की शान्ति के लिए हरि कथा से उतम औसधि और क्या है

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