गीता का इतना महत्व क्यों है कभी सोचा है. आखिर इस पुस्तक पर हाथ रखकर शपथ क्यों दिलाई जाती है. इसके अनेक कारण हैं. सबसे बड़ा कारण यह है कि गीता कोई साधारण ग्रंथ नहीं है.

सृष्टि व्यवस्था में नारायण को पालनकर्ता माना गया है. पालनकर्ता अर्थात विधि-व्यवस्था को जो समुचित देखता रहे. उसे गतिमान रखें. तो जहां विधि-व्यवस्था बनाए रखने की बात होगी वहीं कानून व्यवस्था आएगी.

श्रीमद्भगवद्गीता के हर अध्याय नारायण के अंग हैं. अगर यह कहा जाए कि गीता को स्पर्श करके हम एक प्रकार से नारायण की सौगंध ले रहे होते हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

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कथा कुछ इस प्रकार से है-

भगवान श्रीहरि मूर दैत्य का नाश करने के बाद बैकुंठ लोक में शेष शय्या पर आंखें मूंदे लेटे मन ही मन मुस्कुरा रहे थे.

देवी लक्ष्मी उनकी चरण सेवा कर रही थीं. भगवान को मन में ही मुस्काता देख देवी को कौतूहल हुआ.

देवी लक्ष्मी ने उनसे प्रश्न किया- भगवन आप संपूर्ण जगत का पालन करते हुए भी अपने ऐश्वर्य के प्रति उदासीन से होकर इस क्षीर सागर में नींद ले रहे हैं, इसका क्या कारण है?

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श्रीहरि पुनः मुस्कुराए और अपनी मोहक मुस्कान बिखेरते हुए बोले- हे प्रिये मैं नींद नहीं ले रहा बल्कि अपनी अंतर्दृष्टि से अपने उस तेज का साक्षात्कार कर रहा हूं देवी जिसका योगी अपनी दृष्टि से दर्शन कर लेते हैं.

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जिस शक्ति के अधीन यह समस्त संसार है मैं जब भी उसका मन में दर्शन करता हूं तब आपको ऐसा प्रतीत होता है कि मैं नींद में डूबा हूं परंतु ऐसा है नहीं.

भगवान ने इतनी रहस्यमय तरीके से बात कही कि लक्ष्मीजी को कुछ बातें समझ में आईं कुछ नहीं आईं.

उन्होंने पुनः प्रश्न किया- हे नाथ आपके अतिरिक्त भी कोई शक्ति है जिसका ध्यान स्वयं आप करते हों. यह बात तो मुझे घोर विस्मय में डालती है.

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3 COMMENTS

  1. जय श्री राम, बहुत ही पुण्य का काम कर रहे है, सनातन धर्म को समझने के लिए और कलयुग के रोग की शान्ति के लिए हरि कथा से उतम औसधि और क्या है

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