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ईश्वर हर शरीर में वास करता है. अब किसी शरीर में ईश्वर नंगा घूमें तो क्या ये शोभा देता है? मैं तो जन-जन में समाए भगवान का तन ढंकने के लिए कपड़े बुनता हूं.

मेरा काम वही है पर अब दृष्टिकोण बदल गया है.

दृष्टिकोण बदलने का फर्क यह हुआ कि कई बार जब मैं थकान महसूस करने लगता हूं तो स्वयं भगवान आकर बुनाई में सहायता करने लगते हैं.

इस छोटे काम में भी पूरी ईमानदारी रखी तभी तो भगवान की कृपा हुई.

पहले मैं ईंच-ईंच सूत का ख्याल इसलिए रखता था क्योंकि उसमें पैसे की लागत लगी थी. आज उस सूत का ख्याल इस भाव से रखता हूं कि इससे मेरे भगवान के एक अंग के ढंकने का इंतजाम हो जाएगा.

काम वही कर रहा हूं, बस काम करने की सोच बदल गई तो ईश्वर हाथ बंटा रहा है, शिष्य अपना धन लुटाने को तैयार हैं. काम में जब हम भगवान को साक्षी देखने लगते हैं तो अंदर का चोर भाग जाता है.

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