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माना जाता है कि पितृपक्ष की अवधि में हमारे पितृगण पृथ्वी पर आते हैं. एक पक्ष यानी 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने और संतुष्ट होने के बाद पितर पितृलोक को लौट जाते हैं. इस दौरान पितृ अपने परिजनों के समीप ही स्थित रहकर आनंद का अनुभव करना चाहते हैं.

इसलिए पितृपक्ष में कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे पितृगण की मर्यादा खंडित हो और वे नाराज हों.

पितरों को प्रसन्न रखने के लिए विशेष ध्यान देने की बातें-

– पितृपक्ष के दौरान यथासंभव ब्राह्मण, जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए.

– ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं. फिर यह भोजन पितृगणों को प्राप्त नहीं होता.

– पितृपक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को पीड़ा न दें. प्रतिदिन रसोई में से गाय, कुत्ते, कौआ, बिल्ली आदि के लिए सबसे पहले अंश निकाल दें और उन्हें खिलाएं. इससे पितरों को तृप्ति होती है.

– शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर रखने का भी विधान है.

– द्वार पर आए किसी भी प्राणी का यथासंभव सत्कार करना चाहिए.

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