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श्राद्ध की तिथि निर्धारण की कुछ मान्यताएं-

श्राद्ध की सबसे उत्तम तिथि वह है जिस तिथि को पूर्वजों का निधन होता है. उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना सबसे उत्तम है. जिन्हें परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं उनके लिए पितृपक्ष में कुछ विशेष तिथियां कही गई हैं. वे पितरों का उस दिन श्राद्ध कर सकते हैं.

भाद्रशुक्ल पूर्णिमाः श्राद्ध की शुरुआत भाद्रशुक्ल की पूर्णिमा से ही हो जाती है. 16 सिंतबर यानी सोमवार को इस साल यह तिथि है. इस तिथि को नाना-नानी पक्ष का श्राद्ध किया जाता है.

यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध तर्पण करने वाला न हो और उनकी मृत्यु की तिथि याद न हो तो इस दिन नाती उनका श्राद्ध कर सकते हैं.

पंचमी तिथिः ऐसे पितर जिनका देहांत अविवाहित अवस्था में ही हो गया उनका श्राद्ध कर्म इस तिथि को करना चाहिए.

नवमी: सौभाग्यवती स्त्री जिसकी मृत्यु उसके पति से पूर्व हुई हो उनका श्राद्ध नवमी को किया जाता है.

यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है इसलिए इसे मातृनवमी भी कहा जाता है. इस तिथि पर श्राद्ध कर्म से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है.

चतुर्दशीः जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो यानी स्वाभाविक मृत्यु न हुई हो और उनके श्राद्ध का दिवस ज्ञात नहीं है, ऐसे लोगों को श्राद्ध चतुर्दशी को करें.

सर्वपितृमोक्ष अमावस्या: यह श्राद्ध की सबसे उत्तम तिथि है उनके लिए जिन्हें अपने पितरों के श्राद्ध की तिथि ज्ञात नहीं या किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं. इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है.

इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है.

जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो उनका श्राद्ध भी अमावस्या को ही श्राद्ध करना चाहिए.

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