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कैसे करें पिंडदान, श्राद्धकर्मः-
– पिंडदान में श्वेत वस्त्र ही धारण करें.
– जौ के आटा या खोया से पिंड का निर्माण कर लें.
– फिर चावल, कच्चा सूत, पुष्प, चंदन, मिठाई, फल, अगरबत्ती, धूप, मधु, तिल, जौ, दही आदि से पूजन कर लें.
– पिंड को हाथ में ले लें फिर नीचे बताया मंत्र पढ़ने के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी के मध्य से छोडें.
मंत्रः-
इदं पिण्डं (फिर पितर का नाम लें) तेभ्यः स्वधा.
इस तरह कम से कम तीन पीढ़ी के पितरों को पिंडदान करना चाहिए.
इस तरह पिंड दान करने के बाद निम्न मंत्र को तीन बार पढ़कर पितरों की आराधना करनी चाहिए. यह मंत्र ब्रह्माजी द्वारा रचित है.
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ।।
– इसके बाद पिंड को उठाकर जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.
– श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें. प्रातः एवं सायंकाल में श्राद्ध की मनाही है.
– श्राद्ध करते समय दाहिने से बाएं नहीं बल्कि बाएं से दाहिने (घड़ी की सूई के घूमने की दिशा के विपरीत) परिक्रमा करनी चाहिए.
– श्राद्धकर्म दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूरा करें.
– जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
– श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें. पशु-पक्षियों के प्रति प्रेमभाव रखें.
– पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करना उत्तम है. केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है.
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