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एक रात उतथ्य चुपचाप घर से ऐसे स्थान पर जाने के लिए निकला जहां उसे कोई पहचानता न हो. वह दूर गंगा के किनारे पहुंचा और वहां एक कुटी बनाकर रहने लगा.
उतथ्य को कोई पूजा विधि, मंत्र, शास्त्र आदि तो आते नहीं थे इसलिए वह दिनभर गंगा किनारे धूमता रहता. उसका आचरण साधुओं जैसा था. कैसा भी संकट आ जाए पर वह कभी झूठ नहीं बोलता था.
इस कारण लोग उसे सत्यव्रत कहने लगे. सत्यव्रत ज्ञानी पुरुषों की सेवा करता. इस कारण सत्यव्रत का भी बड़ा सम्मान था. एक दिन वह अपनी कुटी के सामने बैठा था. तभी उसे एक सूअर आता दिखा.
सूअर की पीठ में एक तीर लगा था और खून बहने के कारण वह अचेत हो रहा था. उसके पीछे-पीछे शिकारी भी आ रहा था. उतथ्य को दया आई. उसने सुअर को पास की झाड़ियों में छिपा दिया.
उतथ्य धर्मसंकट में था कि यदि शिकारी ने सुअर का पता पूछ लिया तो उसे सत्य बताना ही पड़ेगा. इस तरह तो शरणागत के प्राण चले जाएंगे. उसने बोलने से बचने के लिए उपाय निकाला.
वह ध्यान में लगे होने का स्वांग करने लगा. शिकारी भी उसकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगा. जब वह समाधि से उठा तो शिकारी को अपने पैरों के पास बैठा पाया. उतथ्य को समझ न आया क्या करें.
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रामायण कि एक वचन जीवन के लिऐ अनमोल है