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आज महान भक्त रविदासजी की जयंती है. संत रविदास जी को नमन. उनके जीवन का एक सुंदर प्रसंग है, आप आनंद लें.
रविदासजी का पारिवारिक कार्य था जूते गांठना. रविदास जी तो भक्त आदमी ठहरे. व्यवसाय कारोबार में क्या मन लगता.
किसी ने पैसे दिए तो ठीक न दिए तो भी ठीक. पिता को लगा कि इस तरह तो घर लुट जाएगा.
उन्होंने विवाह कर दिया ताकि रविदासजी पर जिम्मेदारी आए तो कुछ सामाजिक व्यावहारिता सीख लें.
पिता जी ने अपने से अलग कर दिया क्योंकि भक्त जी गरीबों और साधू संतों को जूते मूफ्त में बनाकर दे देते थे.
पिता ने रविदास जी को एक छत बनाकर दे दी और दुकान के लिए स्थान भी दे दिया. रविदास जी का काम अपने पिता से अलग हो गया परन्तु उन्होंने प्रभुनाम भजने में कोई ढील नहीं होने दी.
हरिद्वार में कुम्भ का मेला हुआ. कुंभ के लिए जाने वाले लोगों का काफिला उनकी दुकान के रास्ते से निकला. इसमें एक गरीब ब्राह्मण गंगाराम भी थे. उनका जूता टूटा तो भक्त रविदासजी पास बैठकर बनवा लिया.
गंगाराम ने एक दमड़ी कीमत दी तो रविदास जी ने वह दमड़ी यह कहकर लौटा दी कि यह हमारी तरफ से आप माता गंगाजी को भेंट कर देना.
किनारे पर खड़े होकर विनती करना. जब मां अपने हाथ निकाले तभी देना. ऐसे ही पानी में नहीं फेंक देना. मां जो कहें वह आकर वह मुझे बता देना.
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