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कर्माबाईजी ने कहा- अभी में स्नान कर रही हूँ, थोडा रुको! थोड़ी देर बाद भगवान ने आवाज लगाई, जल्दी कर माँ, मेरे मंदिर के पट खुल जायेगे मुझे जाना है.
वह फिर बोलीं – अभी में सफाई कर रही हूँ, भगवान ने सोचा आज माँ को क्या हो गया. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ.
भगवान ने झटपट जल्दी-जल्दी खिचड़ी खायी, आज खिचड़ी में भी भाव का वह स्वाद नहीं आया. जल्दी-जल्दी में भगवान बिना पानी पिए ही भागे. बाहर संत को देखा तो समझ गये जरुर इसीने कुछ सिखाया है.
ठाकुरजी के मंदिर के पुजारी ने जैसे ही पट खोले तो देखा भगवान के मुख से खिचड़ी लगी थी. वे बोले- प्रभु! ये खिचड़ी कैसे आप के मुख में लग गयी.
भगवान ने कहा- पुजारी जी आप उस संत के पास जाओ और उसे समझाओ, मेरी माँ को कैसी पट्टी पढाई.
पुजारी ने संत से सारी बात कही. संत घवराए और तुरंत कर्मा बाईजी के पास जाकर कहा- ये नियम धरम तो हम संतो के लिये है आप तो जैसे बनाती हो वैसे ही बनाएँ. ठाकुरजी खिचड़ी खाते रहे.
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