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वह यह सोचकर ही बिना जल पीए चली थी कि कहीं रास्ते में पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी.
उस दिन सोमवती अमावस्या थी. ब्राह्मण के घर से मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिमा की और फिर जल ग्रहण किया.
ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा. उसकी बहू अपने ससुर को फिर से जिंदा देखकर बड़ी प्रसन्न हुई और सास की महिमा सबको बताई.
पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है. अत:, सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृध्दि होती है.
मान्यता है कि जो स्त्री प्रत्येक अमावस्या को ऐसा नहीं कर पाती, वह भी सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं की भंवरी देने के बाद गौरी-गणेश की पूजा करके सोना धोबिन की यह कथा सुनती और दूसरों को सुनाती है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
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