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रात को सास-बहू दोनों निगरानी में बैठे. धोबिन ने देखा कि एक एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम चुपचाप निपटाने के बाद चली जाती है. दोनों ने सोचा शायद कोई शापित दिव्य स्त्री हो.
हिम्मत करके एक दिन वह कन्या काम करके जाने को हुई तो सोना ने रोक लिया और पूछा- आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं?
कन्या ने साधु द्वारा कही गई सारी बात बता दी. सोना धोबिन ने जब यह सुना था उसे बहुत दया आई. वह पतिपरायण तेजस्वी स्त्री थी. उसने कन्या की सहायता के लिए हामी भर दी.
सोना ने कन्या और उसके भाई को कहा कि जाकर विवाह के आयोजन की तैयारी करो. अमावस्या के दिन उन्होंने विवाह का मूहूर्त रखा. सोना के पति अस्वस्थ थे.
जब ब्राह्मण के घर विवाह की तैयारी पूरी हो गई तो सोना जाने को तैयार हुई. उसने बहू से कहा कि जब तक मैं लौटकर नहीं आती, घर में रहो. यदि कोई अपशकुन भी हो जाए तो मेरी प्रतीक्षा करना.
सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति का देहांत हो गया. सोना को इस बात का पता चल गया लेकिन उसने शादी निर्विघ्न संपन्न कराके ही विदाई ली.
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