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तभी छोटे निषाद ने देखा कि चार सुंदर बालक खेलते हुए आए और गठरी के पास बैठ गए फिर गठरी खोलने भी लगे. छोटे निषाद ने देखा तो उनसे नजर नहीं हटती थी लेकिन अपने राजकुमारों के लिए रखा उपहार कोई छूए यह भी पसंद न था.
उसने जोरदार आवाज में पुकारा- ओ भैया गठरी न खोलो. यह हमारी है. लेकिन इतने में चारों कुमारों ने गठरी खोलकर चारों पनहियां पहन ली और प्रसन्नता में उछल-कूद करने लगे.
छोटा निषाद भागता हुआ आया और बालसुलभ क्रोध करने लगा- तुम जानते नहीं यह मैं राजा दशरथजी के चारों कुमारों के लिए ले जा रहा हूं, तुमने बिना पूछे कैसे पहन ली!
प्रभु ने कहा- मित्र तब तो और अच्छा हुआ. जिनके लिए लेकर आए थे, उन्हें मिल गई. हम हैं वे चारों जिनके लिए आप लेकर आए. सुनते ही छोटा निषाद वहीं बालू में लोट गया. उठाकर प्रभु ने सीने से लगा लिया.
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