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फिर मैंने तो सुना है कि वह स्वभाव से संत हैं. संत तो सहनशील व धैर्यवान हुआ करते हैं. फिर भरत कुमार को लेकर आपके चित में ऐसी व्याकुलता क्यों?- पृथ्वी की उत्सुकता बढ़ गई थी.
प्रभु बोले- नहीं, नहीं माता. आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पांव को नहीं, उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा!’ पृथ्वी ने आश्चर्य में पूछा- हृदय विदीर्ण!! ऐसा क्यों प्रभु?
प्रभु श्रीराम ने कहा- भरत अपनी पीडा़ से नहीं दुखी होगा बल्कि यह सोचकर कि इसी कंटीली राह से मेरे भ्राता श्रीराम गुज़रे होंगे और ये शूल उनके पगों में भी चुभे होंगे.
मैया, मेरा भरत कल्पना में भी मेरी पीडा़ सहन सहन नहीं कर सकता! इसलिए उसकी उपस्थिति में आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना.
संकलनः रमा सागर
संपादनः प्रभु शरणम्
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