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समय बदला. नारद का वचन सावित्री को दिन-प्रतिदिन बेचैन कर रहा था. जब उसे जान लिया कि पति की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है तब तीन दिन पूर्व से ही उसने उपवास आरंभ कर दिया.
पति के मृत्यु की नारद द्वारा बताई गई निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया. नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकडी काटने के लिए चला तो सावित्री ने भी सास-ससुर से पति के साथ जाने की आज्ञा ली.
सत्यवान वन में पहुंचकर लकडी काटने के लिए वृ्क्ष पर चढ गया. वृ्क्ष पर चढते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीडा होने लगी. वह व्याकुल हो गया और वृक्ष से नीचे उतर गया.
सावित्री समझ गई कि सत्यवान पर काल की गति मंडरा रही है. उसने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रखकर उसे भूमि पर लिटा लिया. उसी समय दक्षिण दिशा से महिष परसवार यमराज आते दिखे.
धर्मराज सत्यवान के जीवन को जब लेकर चलने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पडी. पहले तो यमराज ने उसे दैवीय-विधान समझाया परन्तु सावित्री कुछ भी सुनने को तैयार न थी.
सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज भी प्रभावित हुए. उन्होंने कहा कि वह पति के प्राणों के बदले उनसे कोई वर मांग ले.
सावित्री बोली- मेरे सास-ससुर वनवासी तथा अंधे हैं. उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें. यमराज ने कहा ऎसा ही होगा और अब तुम लौट जाओ.
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