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राधा जी ने गोपियों को बहलाने का प्रयास तो किया पर सफल नहीं रहीं. किसी ने भी उनकी इस बात का विश्वास न किया. प्रश्नों से भाग रही थीं, अब पलटकर फिर से प्रश्न शुरू हो गए.
सखियों ने पूछा- यदि यह घाव कान्हा के पैरों के नाखून से हुआ तो अबतक सूखा क्यों नहीं? कान्हा को गए तो कई बरस हो गए हैं. इतने में तो कोई भी घाव सूख जाए. देखो कुछ छुपाओ मत. हमसे छुपा न सकोगी. आज नहीं तो कल पता तो चल ही जाएगा. सो अच्छा है कि आज ही बता दो.

राधा जी समझ गईं कि सखियों को आधी बात बताकर बहलाया नहीं जा सकता. वह तो अपने कन्हैया से आज ही रात स्वप्न में पूछ लेंगी.बात तो खुल ही जाएगी इसलिए बता ही देना चाहिए.
राधा जी बोलीं- घाव सूखता तो तब न, जब मैं इसे सूखने देती. मैं रोज इसे कुरेदकर हरा कर देती हूं.
सखियों की तो आंख फटी रह गई ये सुनकर कि राधा जी घाव को हरा कर रही हैं. यह तो बड़ी विचित्र बात हुई. सबके चेहरे पर एक साथ कई भाव आए. अब राधा जी से फिर से प्रश्नों की झड़ी लगने वाली थी. इससे पहले कि कोई कुछ कहे राधाजी ने ही बात पूरी कर दी.
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राधाजी थोड़े दुखी स्वर में बोलीं- कान्हा रोज सपने में आकर इस घाव का उपचार कर देते हैं. घाव के उपचार के लिए ही सही, कन्हैया मेरे सपनों में आते तो हैं. अगर यह सूख गया तो क्या पता वह सपने में भी आना छोड़ दें.
प्रभु द्वारका में बैठे सब सुन रहे थे. उनकी आंखों में आंसू भर आए. वहीं पास में उद्धव जी बैठे थे. उन्होंने प्रभु की आंखों से छलकते आंसू देख लिए.
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