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दोस्त ने उसे गले लगा लिया और बोला- मित्र तुम कहां चले गये थे. यहां बहुत अनर्थ हो गया. हम सारे मित्र तुम्हारे जाने से इतने दुःखी थे कि आत्महत्या करने जा रहे थे पर तुम्हारे आने की आकाशवाणी हुई तो सब ने यह विचार त्याग दिया.

श्रीदत्त ने अपने माता-पिता का हाल पूछा तो मित्र ने बताया कि वल्लभशक्ति की मृत्यु हो गयी और विक्रमशक्ति गद्दी पर बैठा. उसने तुम्हारे पिता के पास सैनिक भेज पुछवाया कि तुम कहां भागे हो? तुम्हारे पिता कालनेमि ने कहा मुझे नहीं मालूम.

विक्रमशक्ति राज्य के शत्रु को चोरी छिपे भगाने के आरोप में उन्हें फांसी पर लटका दिया. उधर तुम्हारी मां इस सदमे को सह नहीं सकी और गोलोक चलीं गयी. सुना है कि है कि वह अभी भी तुम्हें मारने के लिये ढुंढवा रहा है.

निष्ठुरक ने आगे कहा- सारे मित्र तो उज्जयिनी चले गये. मैं आकाशवाणी के अनुसार यहां गंगातट पर तुम्हारी राह देख रहा हूं. स्थितियां विकट हैं शीघ्र ही कोई निर्णय लो.

मां-पिता के निधन से दुःखी श्रीदत्त ने सोचा, मां पिता तो रहे नहीं, घर क्या जाना. ऐसे में श्रीदत्त ने कहा चलो अब उज्जयिनी चलो. सब मित्र वहीं मिलेंगे.

श्रीदत्त अपने मित्र निष्ठुरक को साथ ले उज्जैयिनी चल पड़ा. रास्ते में एक राह भूली स्त्री मिली तो उसे भी साथ ले लिया. रात हुई तो तीनों ने एक उजाड गांव में डेरा डाला.

आधी रात को कुछ खटपट से श्रीदत्त की नींद खुल गयी. उसने देख तो बगल में निष्ठुरक नहीं था. थोड़ी दूरी पर ओट में सो रही वह स्त्री भी न दिखी. कुछ आहट पाकर जब उसने निगाह उस और फेरी तो उसने गज़ब का दृश्य देखा.

श्रीदत्त ने देखा कि वह स्त्री निष्ठुरक को मारकर खा रही है. श्रीदत्त यह वीभत्स दृश्य और न देख सका तुरंत मृगांक तलवार हाथ में ले औरत की और दौड़ा.
(कथा क्रमशः जारी रहेगी)

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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