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मालव क्षेत्र में यज्ञसोम नामक एक ब्राह्मण रहता था. उसके दो बेटे थे. एक का नाम था कालनेमि और दूसरे का विगतभय. यज्ञसोम ने दोनों बेटों को पाटिलीपुत्र के परम विद्वान देवशर्मा से उत्तम शिक्षा दिलायी.
देवशर्मा की दो लड़कियां थीं, दोनों रूपसी. कालनेमि और विगतभय सुंदर और पढाकू थे. देवशर्मा ने दोनों कन्याओं का विवाह यज्ञसोम के दोनो बेटों से कर दिया. इस बीच यज्ञसोम परलोक सिधार गया.
कालनेमि में धनी बनने की चाहत हद से ज्यादा थी. वह दूसरों का धन देखकर जलता था. कालनेमि ने लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए बड़ा शानदार यज्ञ किया. लक्ष्मीजी प्रसन्न हुईं.
लक्ष्मीजी ने उसे धनी होने का वर देते हुए कहा- जा तू धनी हो जा. तेरा एक बेटा राजा बनेगा. पर तूने यह यज्ञ लालच और ईर्ष्या के चलते किया है इसलिए तेरी मौत चोरी के अपराध में होगी.
कालनेमि शीघ्र ही पुत्रवान हुआ. फिर लक्ष्मी के वरदान से धनवान भी. उसका बेटा श्रीदत्त ब्राह्मण होकर भी युद्ध कौशल सीखने में रुचि रखता था. खूब सीखा और महान योद्धा बन गया.
राजा वल्ल्भशक्ति के बेटा विक्रमशक्ति के साथ-साथ अवंति के रहने वाले वज्रमुष्टि और बाहुशाली से उसकी गहरी दोस्ती हो गई. ऐसे ही अनेक योद्धाओं से भी उसने मित्रता की. एक बार गंगातट पर सब मित्र मंडली जमा हुई.
तय हुआ कि एक खेल खेला जाय. सभी योद्धा हैं तो खेल युद्ध का ही होना चाहिए. दो दल बने. एक दल का अगुआ राजकुमार बना तो दूसरे की अगुवाई श्रीदत्त करने लगा.
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