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श्रीदत्त ने राजकुमार और उसके दल को अकेले ही बुरी तरह हरा दिया. मित्र होने के बावजूद वह चिढ गया और उससे झगड़ने लगा. श्रीदत्त बेहतर योद्धा और वीर था पर विक्रमशक्ति राजकुमार था.

अपमान से बेचैन राजकुमार ने श्रीदत्त को मरवा डालने का प्रयास किया लेकिन यह बात श्रीदत्त को पता लग गई. जान का खतरा देख भाग खड़ा हुआ. वह गंगा के किनारे- किनारे भागा जा रहा था तभी देखा एक औरत डूब रही है.

उसने नदी में छलांग लगा दी पर औरत उसके पहुंचने से पहले ही डूब गयी. श्रीदत्त डुबकी लगा कर पानी के भीतर गया. उसने गंगा की तलहटी में एक शिव मंदिर देखा.

न तो वहां पानी था न ही कोई औरत. श्रीदत्त अचरज में था. साथी छूट चुके थे. वापस जाना मुश्किल था. श्रीदत्त बहुत थका था सो वहीं सो गया. सुबह हुई तो देखा कि वही डूबने वाली औरत पूजा करने शिव मंदिर आयी है.

जब वह पूजा कर के लौटी तो श्रीदत्त उसके पीछे पीछे चला. वह औरत एक महल में पहुंची और सीधे अपने पलंग पर गिरकर रोने लगी. श्रीदत्त सब देख रहा था.

सेवक सेविअकाओं की भीड़ उसे समझाने बुझाने में नाकाम हो कर चली गयी तो श्रीदत्त आगे आया. श्रीदत्त ने उसको उसका दुख दूर करने का वचन दिया और दुख की वजह पूछी.

उस औरत ने बताया. मेरा नाम विद्युतप्रभा है. मेरे पिता को विष्णु ने मार डाला और बाबा दैत्यराज बलि को कैद कर लिया है. हम हजार बहनें है जिसमें मैं सबसे बड़ी हूं.
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