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हमारे नगर से हमको निकाल दिया गया और नगरद्वार पर एक सिंह तैनात कर दिया गया है जिसके भय से हम अपने नगर में नहीं जा सकतीं. वह सिंह और कोई नहीं कुबेर का कोई शापित सेवक यक्ष है.

उस सिंह हो मार दें तो हमारा भय खत्म हो. हम अपने नगर को जायें. उसे मारने से आपको यह लाभ होगा कि आपको मृगांक नाम की तलवार मिल जाएगी जिससे आप संसार पर विजय पा सकते हैं.

मुझे पता है कि यह सिंह बना यक्ष मनुष्य के हाथों ही मारा जा सकता है इसलिए आप इसका वध कर सकते हैं. श्रीदत्त हजार बहनों को लेकर नगर द्वार पर चला और युद्ध में सिंह को मार गिराया.

सिंह मरकर तत्काल यक्ष के रूप में बदला और श्रीदत्त को मृगांक नामक तलवार भेंट कर उसकी खासियत बताई और अंतर्धान हो गया. हजार बहनों को लेकर श्रीदत्त नगर में घुसा.

विद्युतप्रभा ने नगर प्रवेश के अवसर पर श्रीदत्त को एक विषनाशक अंगूठी भेंट की. फिर उसने कहा कि युद्ध के बाद उसे इस तलवार के साथ इस तालाब में स्नान कर लेना चाहिए.

श्रीदत्त अपनी मृगांक तलवार और विषनाशिनी अंगूठी पहनकर जैसे ही बावड़ी में घुसा अपने को गंगा के तट पर पाया. उसने अचरज से इधर उधर देखा तो उसका दोस्त निष्ठुरक वहां घूमता मिला.
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