महादेव और विष्णुजी में जो लोग भेद देखते हैं उनके लिए यह कथा बहुत जरूरी है. हर और हरि एक हैं. शैव-शाक्त-वैष्णव का प्रतिद्वंद्व भाव मानव की मूर्खता है. ईश्वर आपस में प्रतिस्पर्धा भाव नहीं रखते. महादेव और विष्णुजी एक दूसरे की पूजा करते हैं.
धार्मिक व प्रेरक कथाओं के लिए प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े, लिंक-
[sc:fb]
प्रभु शरणं के पोस्ट की सूचना WhatsApp से चाहते हैं तो अपने मोबाइल में हमारा नंबर 9871507036 Prabhu Sharnam के नाम से SAVE कर लें. फिर SEND लिखकर हमें इसी पर WhatsApp कर दें. जल्दी ही आपको हर पोस्ट की सूचना WhatsApp से मिलने लगेगी. यदि नंबर सेव नहीं करेंगे तो तकनीकि कारणों से पोस्ट नहीं पहुँच सकेंगे.
Pमहादेव और विष्णु जी के बीच क्या कोई वैमनस्या कोई झगड़ा है! यह प्रश्न बहुत से लोगों के मन में आता है जब वे पुराणों को पढ़ते हैं. हर पुराण के आधार देवता एक विशेष देव हैं. उनको केंद्र में रखकर पुराण रचना हुई है. इसके पीछे एक कारण है. इस कारण पर भी जल्दी ही आपको पुनः बताऊंगा. वैसे विषय पर चर्चा प्रभु शरणम् ऐप्प में हो चुकी है. आप प्रभु शरणम् ऐप्प से जुड़े रहें. वहां बहुत अच्छी-अच्छी चर्चाएं होती रही हैं. मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि ऐप्प पर पोस्ट करना बहुत सरल है, वेबसाइट पर पोस्ट करने में कई झमेले हैं. ऐप्प का लिंक पुनः दे रहा हूं-
हिंदू धर्म से जुड़ी सभी शास्त्र आधारित जानकारियों के लिए प्रभु शरणम् से जुड़ें. सर्वश्रेष्ठ हिंदू ऐप्प प्रभु शरणम् फ्री है.
Android मोबाइल ऐप्प डाउनलोड करने के लिए यहां पर क्लिक करें
महादेव और विष्णु जी के साथ किसी विवाद की कल्पना करने वाले भक्त अज्ञानी और मूढ हैं. इस प्रकार वे शिवनिंदा और विष्णु निंदा दोनों ही करते हैं. शिव के मानने वाले शैव और विष्णु के मानने वाले वैष्णव संप्रदाय के गुरुओं ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए यह विवाद हमेशा बनाए रखना चाहा है. महादेव और विष्णु में कोई भेद नहीं है. न ही इस भेद की अनुमति है. तुलसीदासजी ने रामचरितमानस लिखकर इस भेद को झूठा साबित किया भी है. आप एक कथा सुनिए. आपको आनंद भी होगा. महादेव और विष्णु में परस्पर कैसा रिश्ता है यह भी आप समझेंगे.
एक समय की बात है की महर्षि गौतम ने भगवान शंकर को अपने आश्रम में भोज पर आमंत्रित किया. उनके इस आग्रह को शिवजी ने तो स्वीकार कर ही लिया, विष्णुजी और श्रीब्रह्माजी भी साथ चलने को तैयार हो गए. महादेव और विष्णु जी के संग ब्रह्मा भी चले.
तीनों महर्षि गौतम के आश्रम में पहुंचे. फिर भोजन परोसे जाने की प्रतीक्षा करने लगे. भोजन की तैयारियों में कुछ विलंब होता देख महादेव और विष्णु जी कुछ देर आपस में हंसी-मजाक करते रहे. फिर सोचा क्यों न इस समय का लाभ लिया जाए. आश्रम के पास ही एक तालाब था, दोनों परमदेव वहां स्नान को चले गए.
[irp posts=”7087″ name=”शिवजी के पांच नागकन्या पुत्रियां भी हैं!”]
महादेव और विष्णु जी तालाब में स्नान को गए तो भूलोक पर होने के कारण पृथ्वीवासियों जैसे कौतुक करने लगे. महादेव और विष्णु जी एक दूसरे पर इस प्रकार जल फेंक रहे थे जैसे पुराने बिछड़े मित्रों का लंबे समय बाद मिलना हुआ है. दोनों ही आनंद में भरकर लीलाएं कर रहे थे.
दोनों एक दूसरे पर पानी उछालते तो कभी दूसरे को पकड़कर पानी में डुबकी लगा देते. भोजन तो तैयार हो चुका था पर महादेव और विष्णु जी की जलक्रीड़ा जारी थी. दोनों के इस प्रकार के आनंद को देखकर देवतागण हर्षित थे. कोई नई लीला समझकर मन ही मन प्रणाम कर रहे थे.
नारदजी से कोई बात छुपती नहीं है. वास्तव में पृथ्वीलोक की सूचनाएं देवलोक तक पहुंचाने वाले वही एक स्रोत हैं. अब यहां महादेव और विष्णु जी पृथ्वी पर लीला कर रहे हैं यह सुनते ही नारदजी झटपट भागे. इसका रस लेने का अवसर वह कैसे गंवा सकते थे. नारदजी सरोवर पर आए तो जो आनंद अनुभव हुआ वह उनकी कल्पना से भी अधिक था.
अब तो नारदजी विभोर हो गए. मधुर वीणा बजाते हुए स्तुति गाने लगे. महादेव और विष्णुजी ने देखा कि नारदजी तो झूमते हुए गा रहे हैं तो वे भी उनका साथ देने लगे. शिवजी तो जल पर थपकी देते हुए नारदजी के सुर में सुर मिलाने लगे, जैसे जलतरंग बजते हों.
[irp posts=”7001″ name=”श्रीकृष्ण के किस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए”]
विष्णुजी पानी से बाहर आए और मृदंग बजाने लगे. अब तो वहां दिव्य माहौल बन गया था.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.
Hariom
Very nicely compiled I am also a lord shiv bhakt
अति सुंदर प्रसंग।हरिहर भगवान की जय
Ram Ram Ram Ram