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आश्रम पास ही था. जब ब्रह्माजी तक गाने-बजाने की आवाज पहुंची तो वे भी इस आनंद में शामिल होने के लिए चले आए. हनुमानजी भी कहीं आस-पास उपस्थित थे सो वह भी चले आए और राग अलापने लगे.
सभी देव, नाग, किन्नर, गन्धर्व आदि उस अलौकिक लीला को देख रहे थे. अपनी आंखें धन्य कर रहे थे. इधर तो आनंद चल रहा था उधर गौतम यह सोचकर परेशान थे कि स्नान को गए मेरे पूजनीय अतिथिगण आ क्यों नहीं रहे!
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उन्हें चिन्ता हो रही थी. इधर सब के गाने-बजाने मे इतने मगन थे कि उन्हें यह भी याद न रहा कि वे महर्षि गौतम के अतिथि बनकर आए हैं.
गौतम आए और स्मरणकराया- प्रभो भोजन के लिए विलंब हो रहा है. जब तक आप सब भोग न लगाएंगे कोई आश्रमवासी अन्न ग्रहण नहीं करेगा.
गौतम ने आनंद में डूबे देवों को बड़ी ही मुश्किल से भोजन के लिए मनाया और आश्रम लेकर आए और भोजन परोसा. तीनों ने भोजन शुरू किया. हनुमानजी ने फिर गाना शुरु कर दिया.
भोजन के बाद शिवजी संगीत में आनंदमग्न होकर खोए लेट गए और नींद आ गई. उनका एक पैर हनुमानजी के हाथों पर और दूसरा पैर हनुमानजी के सीने, पेट, नाक, आँख आदि अंगों का स्पर्श कर रहा था.
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यह देखकर विष्णुजी ने हनुमान से कहा- हनुमान आप बहुत भाग्यशाली हैं जो शिवजी के चरण आपके शरीर को स्पर्श कर रहे है. जिन चरणों को पाने के लिए सभी देव-दानव लालायित रहते हैं. उन चरणों का स्पर्श सहज ही तुम्हें प्राप्त हो गया है. मैंने भी सहस्त्र कमलों से इनकी अर्चना की थी पर ये सुख मुझे भी न मिला. आज मुझे आपसे ईर्ष्या का अनुभव हो रहा है.
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Hariom
Very nicely compiled I am also a lord shiv bhakt
अति सुंदर प्रसंग।हरिहर भगवान की जय
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