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9. भगवान कृष्ण ने कहा है कि मैं भक्तों का दास हूं. अपने भक्तों की चरण-रज मुख के द्वारा अपने ह्रदय में धारण करने की ही एक लीला है भगवान द्वारा मिट्टी खाना.

10. भगवान श्रीकृष्ण के उदर में रहने वाले कोटि-कोटि ब्राह्मांड़ों के के जीव ब्रज-रज—गोपियों के चरणों की रज—प्राप्त करने के लिये व्याकुल हो रहे थे. उनकी यह कामना पूरी करने के लिये भगवान ने मिट्टी खायी.

11. श्रीकृष्ण ने सोचा सब रस तो ले ही चुका हूँ, यहां श्री राधा रानी की चरणों की धूल पड़ी है, आगे चलकर रास भी करना है, अब क्यों न रसा-रस का भी स्वाद लेता चलूं. संस्कृत-भाषा में पृथ्वी को ‘रसा’ भी कहते हैं.

11. पहले गोपियों का दही, मक्खन खाया था, उलाहना देने पर मिट्टी खा ली, जिससे मुँह पूरी तरह साफ हो जाय. मुह इसलिये खोला कि, ये मुझ अकेले को ही क्यों फंसा रहे हैं. मैंने खायी, तो सबने खायी, देख लो मेरे मुख में समूचा संसार!

12. श्रीकृष्ण ने विचारा कि मुख में विश्व देखकर माता अपनी आँख बंद कर लेगी, यह सोचकर मुख खोल दिया. भगवान ने जल्द ही मुंह बंद इसलिये कर लिया कि मां को मेरा सारा ऐश्वर्य दिख गया तो फिर पुत्र के रूप में प्रीति समाप्त हो जायेगी. वैसे भी ऐश्वर्य प्रेम का शत्रु है.

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