शिवजी लीलाएं करते रहते हैं. आज उनकी एक विचित्र लीला की कथा सुनाउंगा जिसमें वह कामदेव का रूप धरकर नंग-धडंग घूमने लग गए. शिवजी ने यह लीला भक्तों की परीक्षा लेने के लिए की.

 

दारूवन में एक के बाद एक समस्या आ जाती थी. वहां रहने वाले मुनियों और उनके परिवार के लिए बड़ा संकट आ जाता था. सबने मिलकर सोचा कि महादेव को प्रसन्न किया जाए. उनकी कृपा से ही संकट का निवारण हो सकेगा. असंख्य मुनिगण और उनकी पत्नियां महादेव को प्रसन्न करने के लिए सामूहिक रूप घोर तप करने लगे. उनके तप से शिवजी प्रसन्न हो गए.

शिवजी ने उन्हें दर्शन देकर उनके कष्ट निवारण का निर्णय किया. माता पार्वती ने कहा भोलेनाथ क्यों न पहले भक्तों की थोड़ी  परीक्षा ले लीजिए. शिवजी को बात जम गई. उन्होंने परीक्षा लेने के लिए एक लीला रची. शिवजी मनमोहक और सुदर्शन छवि वाले सजीले युवक बन गए. हृष्ट-पुष्ट, सांवले तन वाले वाले भगवान के रूप पर दारूवन के मुनियों की स्त्रियों ने देखा तो वे आकर्षित हो गईं.

शिवजी मधुर स्वर में गाते हुए दारूवन में घूमने लगे. उनकी मोहक मुस्कान, नैनों की भंगिमाएं और सुंदर गीत से नारी समूह में कामभाव जागने लगा. यहां तक कि बहुत सी पतिव्रता स्त्रियां भी मोहित होकर उनके पीछे-पीछे चलने लगीं. शिवजी के पीछे चलती आयीं वे स्त्रियां उनकी कुटिया के द्वार पर जाकर खड़ी हो गईं.

आकर्षण में वे इतने खो गयीं थीं कि उनको अपना होश ही न था. कुछ नाच-गा रही थी तो कुछ द्वार पर टकटकी लगाए उनके बाहर आने के राह देख रही थी. स्त्रियों ने उन्हें घेर लिया और विनती करने लगीं कि हमारा क्षेत्र छोड़कर कहीं मत जाना. हम तुम्हें देखे बिना नहीं रह सकते. हमें अपनी झलक दिखाकर ऐसे ही प्रसन्न करते रहो.

भगवान शंकर तो चुपचाप बस मंद-मंद मुस्कुराते उनकी बातें सुनते रहे. शिवजी तो चुप थे लेकिन अपनी पत्नियों की यह व्याकुलता देखकर मुनिजन घबरा गए. उन्होंने आपस में सभा की. कहां हम समस्या के निदान के लिए तप में लग गए तभी पीछे से जाने यह कौन आ बसा. इसने तो हमारी स्त्रियों को वश में कर लिया है. कुछ ऐसा करना होगा कि ये आगंतुक खुद ही यहां से भाग जाए.

तय हुआ कि पहले तो इसे बुरा-भला कहकर अपमानित किया जाए. उससे बात न बनी तो आगे दूसरे यत्न किए जाएंगे. मुनियों ने अपना सौम्य आचरण त्याग दिया और मूर्खों की तरह आगंतुक बने शिवजी को गाली देने लगे.

वे  उन्हे  अपमानित करने का कोई अवसर न छोड़ते. सारी सीमाएं तोड़ दी गईं पर शिवजी थे कि विचलित न हुए. वह तो बस मंद-मंद मुस्कुराते रहते.

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