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एक दिन किसान कंधे पर पानी लिए चला जा रहा था तभी आवाज आई- मैं खुद पर शर्मिंदा हूं. आपकी मेहनत बर्बाद करने के लिए माफी मांगता हूं.

किसान ने पूछा- तुम किस बात से शर्मिंदा हो?

घड़े ने कहा- पिछले कई सालों से आप मुझे रोज लेकर नदी तक आते हैं. साफ करके पानी भरते हैं बदले में मैं बेईमानी कर लेता हूं. मुझे जितना पानी आपके घर पहुंचाना चाहिए था उसका आधा ही पहुंचा पाया हूं. मेरे अन्दर कमी है जिससे आपकी मेहनत बर्वाद होती रही.

घड़ा काफी दुखी था.

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किसान घड़े की बात सुनकर बोला- कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को जरूर देखना. उसके बाद हम फिर से इस पर बात करेंगे.

नदी से घर के रास्ते पर घड़े ने वैसा ही किया.

रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखा तो उसकी उदासी कुछ दूर हुई लेकिन घर पहुंचते-पहुंचते उसका आधा पानी गिर चुका था.  इस बात से उसकी खुशी गायब हो गई और वह मायूस होकर किसान से बार-बार क्षमा मांगने लगा.

किसान ने समझया- शायद तुम मेरा संकेत नहीं समझे. तुमने एक बात और नहीं गौर की कि रास्ते में जितने भी फूल खिले थे वे सब तुम्हारी तरफ ही थे. जिस घड़े से पानी नहीं गिरता उसकी तरफ एक भी फूल नहीं था.

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मैं तुम्हारी कमी को जानता था लेकिन मैंने तुम्हें त्यागने की बजाय उसका लाभ उठाया. मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर फूलों के बीज बो दिए थे. तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे. पूरे रास्ते को इतना सुंदर बना दिया. तुम्हारे कारण ही मैं भगवान को फूल अर्पित कर पाता हूं. तुमसे अपना घर सजाता हूं.

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