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तुलसी गणेशजी को रिझाने के लिए तरह-तरह के प्रयास करने लगीं. गणेशजी तुलसी के कार्यकलापों को आश्चर्य से देख रहे थे. वह समझ नहीं पा रहे था कि स्त्री ऐसा क्यों कर रही है.
आखिरकार गणपति तुलसी के पास गए और पूछा- देवी आप कौन हैं? यहां आने का प्रयोजन क्या है? आप तरह-तरह के स्वांग क्यों रच रही हैं, इससे मुझे खलल होती है?
तुलसी ने बताया कि वह गणेशजी पर मोहित हो चुकी हैं और उनसे विवाह करना चाहती हैं. गणेशजी ने तुलसी को समझाया कि किसी ब्रह्म योगी का ध्यान भंग करना अशुभ होता है.
गणपति हंसकर बोले-काममोहित होकर मेरे तप में विध्न डालकर घोर अपराध किया है. मैं ब्रह्मचारी हूं. मुझ पर आपके ये प्रयास व्यर्थ हैं. अपने रूप-मोह में किसी और को बांधने का प्रयत्न कीजिए.
इस अपमान से तुलसी क्रोध से तिलमिलाने लगीं. उन्हें लगा कि गणेश उनके जैसी तेजस्विनी और रूपवती स्त्री का उपहास करने के लिए बहाने बना रहे हैं.
तुलसी ने गणेशजी को श्राप दे दिया- विवाह का प्रस्ताव ठुकराने के लिए आपने ब्रह्मचारी होने की कहानी गढ़ी और मेरा अपमान किया. यदि मैं नारायण की भक्त हूं तो मेरा शाप है कि आपके एक नहीं दो-दो विवाह होंगे.
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