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पुकार सुनकर शिवजी ने अपना रौद्र रूप उसके हृदय से गायब कर दिया और सामान्य स्वरूप में प्रकट हुए. पिप्लाद बोले- प्रभु मैंने तो आपसे देवताओं को भस्म करने की प्रार्थना की थी. आप तो मुझे ही भस्म करने लगे. क्यों?
शिवजी जोर से हंसे फिर बोले- पुत्र विनाश किसी एक स्थान से शुरू होता है लेकिन फिर वह रोकने से नहीं रूकता. बढ़ता चला जाता है. एक दिन उसको भी अपनी चपेट में ले लेता है जिसने उसे शुरू किया था.
तुम्हारे हाथ इंद्र हैं, नेत्र सूर्य हैं और मन चंद्रमा है. तुम्हारे सारे अंग किसी न किसी देवता के रूप हैं. अगर उनको नष्ट कर दोगे तो तुम कैसे बचे रहेगो. तुम्हारे पिता ने परोपकार के लिए शरीर त्याग दिया और तुम उनके पुत्र होकर दूसरों को नष्ट करना चाह रहे हो.
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