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मंत्री ने बताया- कवि सबसे पहले ईश्वर की प्रशंसा करता है. इसने तो राजा को ही ईश्वर मान लिया. भगवान की प्रशंसा में तो एक शब्द न कहे और राजा-रानी के लिए गाता चला गया.
उसने जब आज ईश्वर की प्रशंसा का एक शब्द भी नहीं बोला तो मुझे लगा कि उसे इस अपराध की छोटी सी सजा देकर मुक्ति करा दी जाए.
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ईश्वर से विमुख होने पर यहां तो उसे बस पांच जूते ही लगे और छूट गया, वहां ईश्वर के लोक में तो पता नहीं कितनी सजा पाता क्योंकि सभी को बनाने वाला वह ईश्वर है.
ईश्वर ने ही राजा और रानी को बनाया है. कवि ने ईश्वर द्वारा बनाए लोगों की प्रशंसा तो की लेकिन उसको भूल गया जिसने सबको बनाया है. अपनी चाटुकारिता से वह ऐसे राजा को पथभ्रष्ट भी तो कर सकता है.
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इसका दंड मिलता तो अलग. अब बताओ क्या पांच जूते लगवाकर मैंने उसे नर्क से नहीं रोका.
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Great knowledge able informative and true
Messages ,
We thanks you .
राधे राधे जी