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जीवात्मा ही बेचैन होते हैं, सुख में उधम मचाने लगेंगे और दुख में हिम्मत हारने लगेंगे लेकिन परमात्मा समभाव में हैं. इसलिए जीवात्मा का अंततः उसकी ओर झुकाव होता है.

जब जीवात्मा परमात्मा के करीब जाने को बेचैन होता है तो वही आध्यात्म की स्थिति है क्योंकि मन की शांति तो वहीं मिलनी है. मन की शांति की ओर अग्रसर होने में हम जितनी देर करेंगे, कड़वे फल उतने ही चखने को मिलेंगे.

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