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गोपियों हों या बंदर ये सब तो देवता ही थे जिन्होंने प्रभु के लीला रस का आनंद लेने के लिए अवतार लिया था. प्रभु किसी को अपूर्ण कैसे रखते भला! उनकी लीलाओं से पूरा व्रज आनंद में सराबोर था.
यशोदा मैया को उलाहने भी आते. अब प्रभु लीला करें और मैया तक बात न पहुंचे, फिर क्या लाभ. लगातार कन्हैया के उलाहने आने लगे. माता उन्हें समझातीं तरह-तरह की कसमें देकर शरारत नहीं करने का वचन लेतीं, पर लीलाधर लीला छोड़ दें!
एक दिन बालकों ने आकर यशोदाजी से शिकायत की कि कान्हा ने मिट्टी खा ली है. माता भागी आईँ कि कहीं लल्ला को कोई रोग न हो जाए. उन्होंने कन्हैया को डांटा तो उन्होंने तो साफ मना कर दिया कि मैया मैंने तो माटी खाई ही नहीं.
माता ने सोचा कन्हैया के मुख से माटी निकालकर ही दिखा दूं. उन्होंने गोद में बिठाया और मुंह खोला. मुख के अंदर उन्हें सारा चर अचर जगत दिखाई पड़ने लगा. सारी सृष्टि उसमें समाई हुई थी. माता तो देखती ही रह गईं.
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