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देवताओं ने सभी समस्याओं का एक हल श्रीलक्ष्मी में ढूंढ लिया है. इस प्रकार देवगणों को आनंद में मग्न देखकर विरोचन आदि दैत्यगण लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए तपस्या एवं यज्ञ करने लगे.
दैत्य बड़े बलशाली और प्रभावशाली थे. वे देवताओं से बस इसलिये परास्त हो जाते थे क्योंकि वे न केवल धर्म के रास्ते पर नहीं रहते थे, कदाचारी और कुबुद्धि थे.
अब जबकि दैत्य भी सदाचारी और धार्मिक हो गए तो फिर दैत्यों के तेज और बल का कोई ठिकाना ही नहीं रहा. फिर तो दैत्यों के पराक्रम से सारा संसार आक्रान्त हो गया.
बिन कुछ विशेष प्रयास किए सुख सुविधा और संकटहीन, समृद्धशाली जीवन बिताने के कारण कुछ समय बाद देवताओं को लक्ष्मी का मद हो गया. वे अहंकार में ऐसे कार्य करने लगे जो देवत्व के अनुरूप नहीं थे.
देवताओं और उनके उपासकों को वैभव सहजता से प्राप्त हो गया तो वे साफ-सफाई, पवित्रता, सत्यता आदि सभी उत्तम आचार नष्ट होने लगे.
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