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देवकी की आठवीं संतान पुत्री थी और उसने कंस से कहा था- उसको मारने वाला जन्म ले चुका है. यदि मैं नामकरण संस्कार करवा दूंगा तो मुझे पूर्ण आशा है कि वह इन बच्चों को मार डालेगा और व्रजवासियों का अनिष्ट करेगा.

नंदजी को गंर्गाचार्यजी की बात समझ में आ गई लेकिन वह ऐसे विद्वान महात्मा के हाथों ही नामकरण संस्कार कराना चाहते थे. नंदजी ने कहा-यदि ऐसा है तो एकान्त स्थान में चलकर इनके द्विजाति संस्कार करवा दें. मैं किसी को न्योता न दूंगा.

नंद के प्रस्ताव से गर्गाचार्य प्रसन्न हो गए और उन्होंने एकान्त में चुपचाप दोनों बच्चों का नामकरण करवा दिया. उन्होंने अपना अभीष्ट भी पूरा किया और वसुदेवजी को दिया गोपनीयता का वचन भी रख लिया.

गर्गाचार्यजी ने कहा- रोहिणी का यह पुत्र गुणों से अपने लोगों के मन को प्रसन्न करेगा. अतः इसका नाम राम होगा. यह असीमित बल का स्वामी है इसलिए इसे बल भी कहा जाएगा. बल और राम के साथ इसे बलराम नाम भी मिलेगा.

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