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रात का समय था. चारों तरफ गहरी खामोशी थी. एक घर में चार दीये जल रहे थे. दीये उदास थे. एकांत मिलते ही दीयों ने एक दूसरे से दिल की बात कहनी शुरू की.
पहले दीये ने कहा- मैं शांति हूँ. पर अब मुझे लगने लगा है अब इस दुनिया को शायद मेरी ज़रुरत नहीं है.
क्रोध और उत्तेजना ने इस तरह सबको जकड़ लिया है कि चारों तरफ आपाधापी और लूटमार मची हुई है. मैं यहाँ अब और नहीं रह सकता.
इतना कहकर दुखी मन से सबको विदा कहता वह शांति का दीपक बुझ गया.
दूसरे दीये ने कहना शुरू किया- मैं विश्वास हूँ. दुनिया के झूठ और फरेब के बीच मेरा दम घुटने लगा है. शायद यहाँ मेरी कोई ज़रूरत नहीं है.
मुझे भी शांति की तरह अब यहां से विदा हो लेना चाहिए. विश्वास के दीपक ने भी सबको अलविदा कहा और बुझ गया.
अब तीसरे दीये ने अपना दुखड़ा सुनाना शुरू किया. दो साथियों के बिछड़ने से उसका मन बहुत उदास हो चुका था.
उसने कहा- मैं प्रेम का दीपक हूं. मेरे पास जलते रहने की शक्ति है लेकिन आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास फुर्सत ही नहीं.
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