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दो मित्र थे. दोनों साथ-साथ बड़े हुए और दोनों ने लगभग एक ही समय आजीविका के लिए संघर्ष आरंभ किया.

एक धार्मिक स्वभाव का था. भगवान की पूजा-अर्चना के बाद प्रार्थना करता कि उससे भूले से भी कुछ अनुचित न होने पाए. साधारण नौकरी थी लेकिन वह संतुष्ट था.

जहां नौकरी करता वहां उसके धार्मिक स्वभाव और अच्छे आचरण से सब उसका सम्मान करते. अपने सुख-दुख बांटते. छोटे-बड़े सभी से भरपूर सम्मान मिलता.

दूसरा मित्र एकदम नास्तिक और धन के पीछे पागल था. भोग-विलास में डूबा रहता. पैसे कमाने के लिए सही-गलत किसी भी तरीके से उसे परहेज न था.

स्वयं धन का लोभी था, पत्नी फिजूलखर्च. इससे घर में क्लेश होता. किसी के आड़े वक्त में खड़ा न होता. पैसे के अलावा उसका कोई मित्र न था.

जब ईश्वर में ही विश्वास न हो तो दान-पुण्य की बात ही क्या! पैसे के कारण उसने बहुत सारे शत्रु भी बहुत बना लिए थे. जान का भय रहता.

स्वभाव से एकदम अलग होने के बाद भी दोनों की मित्रता बनी रही. एक दिन दोनों की भेंट हो गई. पहले मित्र ने दूसरे से घर चलने को कहा और साथ कर लिया.
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