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नैमिषारण्य में गोमती के तट पर धर्मात्मा, बुद्धिमान और शास्त्रों का ज्ञाता पद्मनाथ नामक एक नाग रहता था. वह तप, संयम और उत्तम विचारों से युक्त हमेशा स्वाध्याय में लगा रहता.

तीर्थयात्रा पर निकला एक ब्राह्मण उसके दर्शन को पहुंचा. नागराज घर पर नहीं थे तो नागपत्नी ने अतिथि का सत्कार किया. नागपत्नी ने कहा कि नागराज घर पर नहीं हैं. वह आते ही आपके दर्शन करेंगे.

ब्राह्मण ने कहा- जब तक उनके दर्शन नहीं होते तब तक मैं गोमती के तट पर निराहार उनकी प्रतीक्षा करूंगा. वह नागपत्नी के बार-बार कहने पर भी निराहार गोमती के तट पर बैठा साधना करने लगा.

नागपत्नी परिवार के बुजुर्गों और बच्चों को लेकर ब्राह्मण के पास पहुंची और कहा- हम गृहस्थ हैं और गृहस्थ का अतिथि भोजन न करे तो मन क्लेशयुक्त रहता है. आप हमें सत्कार का अवसर दीजिए.

किंतु ब्राह्मण ने उनका आभार व्यक्त कर यह कहते हुए लौटा दिया कि उसने दर्शन का व्रत लिया है. छह दिनों बाद नागराज आए तो पत्नी ने सब बताया.

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