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सूतजी बोले- यहां तक कहा गया है कि शरीर पर रूद्राक्ष और मस्तक पर भस्म का त्रिपुंड धारण करने वाला चांडाल भी सबके द्वारा पूज्य हो जाता है क्योंकि रूद्राक्ष और त्रिपुंड के प्रभाव से उसकी निकृष्य वृति का नाश हो जाता है. वह शुद्ध हो जाता है.

त्रिपुंड की महिमा बड़ी प्रभावी है. त्रिपुंड की तीन रेखाएं तीन देवों की प्रतीक हैं. प्रथम रेखा अकारवाची है, यह ऋग्वेद का प्रतिनिधित्व करती है और उसके देवता महादेव हैं.

द्वितीय रेखा उकारवाची है जो यजुर्वेद का प्रतिनिधित्व करती है और उसके देवता महेश्वर हैं. तृतीय रेखा मकारवाची है. वह सामवेद का प्रतिनिधित्व करती है और उसके देवता शिव हैं.

इसके अलावा त्रिपुंड की तीन रेखाओं को क्रमशः उपासना, कर्म और ज्ञान- इन तीन शक्तियों का प्रतीक समझना चाहिए. शिवजी ने विधान कर रखा है कि रूद्राक्ष और त्रिपुंड को धारण करने वालों को यमलोक की यातना भोगनी नहीं पड़ती.

सूतजी बोले- ब्राह्मणों मैंने आपको भस्म और त्रिपुंड के धारण करने की विधि व महिमा बताई जो मैंने अपने गुरू नंदीश्वरजी के मुख से सुनी थी.

सूतजी द्वारा त्रिपुंड और भस्म की महिमा सुनकर वहां उपस्थित सभी तपस्वी धन्य और आनंदित हो गए. उन्होंने सूतजी से रूद्राक्ष की महिमा का बखान करने की विनती की.

सूतजी बोले- ऐसा प्रश्न स्वयं पार्वतीजी ने भोलेनाथ से किया था. पार्वतीजी को शिवजी ने रूद्राक्ष के तेरह प्रकारों का परिचय देते हुए कहा-

रूद्राक्षाः विविधाः प्रोक्तास्तेषां भेदान् वदाम्यहम्।
शृणु पार्वति सद् भक्तया भुक्तिमुक्तिफलप्रदान्।।

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