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रविदास जी बोले- कहो आपका क्या हुक्म है? आप क्या चाहते हो? राजा ने कहा- इस कंगन के साथ दूसरा कंगन मिलाओ तो ठीक है, नहीं तो चोरी का माल जानकर पड़ताल की जाएगी और सजा दी जाएगी.

रविदास जी राजा की धमकी सुनकर मुस्कराए और उन्होंने “राग मारू” में भजन गाना शुरू कर दिया. भजन के बाद रविदासजी ने जूती बनाने की शिला उठाई तो उसके नीचे से गंगा का प्रवाह चल निकला.

तब रविदास जी ने राजा से कहा- मन चंगा तो कठौती में गंगा. इस कंगन से पहचान कर दूसरा कंगन उठा लो. वहां कई कंगन तैरते दिखे. राजा उनके चरणों में गिर पड़ा और दूसरा कंगन गंगा से निकालकर दोनों कंगनों रविदास जी के चरणों में रख दिया.

रविदास जी ने कहा- राजन! यह पण्डित बड़ा निर्धन है, कंगन इसे दान कर दो क्योंकि दान देते समय यह देखना चाहिए कि दान लेने वाले को उसकी आवश्यकता है कि नहीं.

इस पण्डित को इसकी आवश्यकता है और यह उचित भी है, ताकि यह अपने परिवार के साथ सुख से जिन्दगी के दिन व्यतीत करे. राजा ने दोनों कंगन तुरन्त उस पण्डित को दान कर दिए.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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