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जौहरी सोचने लगा कि जरूर राजमहल में कथा करते समय रानी का कंगन चुराया होगा या फिर किसी दुराचरण रानी ने प्रेमवश आप ही कंगन दिया होगा.
चोरी के माल को लेना खतरे से खाली नहीं. उसने सिपाहियों को चुपके से खबर कर दी. नगर कोतवाल ने कंगन समेत चोर को पकड़ा लिया और चालान गाजीपुर की अदालत में राजा चन्द्रप्रताप के पास भेज दिया ताकि वह शाही माल पहचानकर फैसला करें.
राजा ने कंगन देखकर पण्डित से कहा- तुमने एक कंगन ही अभी निकाला. इसका दूसरा कंगन भी लाओ. जहां से चुराया है वहां का पता दो.
पण्डित ने कहा कि चोरी नहीं की है और कंगन कैसे मिला इसकी राजा को पूरी कथा सुना दी. पंडित ने कहा यह सब काशी के रविदास जी की महिमा है. दूसरा कँगन लाने की ताकत तो केवल रविदास जी में ही है.
राजा को बात मनगढ़ंता लगी और आगबबूला हो गया. उसने सोचा दोनों मिलकर चोरी और हेराफेरी करते हैं. थानेदार को हुक्म भेजा कि जल्दी से काशी में रहने वाले रविदास को लेकर आओ.
चोरी के माल का असली पता केवल उसी के पास है. अगर दूसरा कँगन भी ला दें तो मैं उनकी करामात समझूँगा वरना इन दोनों को ही फाँसी पर चढ़ा दूंगा.
कोतवाल ने श्रीरविदास जी को सारी बात बताई. रविदास जी अपना जूते बनाने वाला सामान लेकर पहुँचे और जुते बनाने बैठ गए और राजा को वहां आने के लिए कोतवाल को कह दिया. राजा रानी समेत रविदास जी के पास पहुंचा.
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