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उसी वक्त श्रीहरि ने सुदर्शन चक्र से सूर्य को ढक लिया. रावण को लगा कि सूर्यास्त हो गया है. उसने संध्या पूजा की चिंता हुई. वह बालक रुपी गणेश के पास गया और उनसे बोला कि मैं पूजा के लिए स्नान करने समुद्र में जा रहा हूं. तब तक थोड़ी देर ले लिए वह यह आत्मलिंग पकड़ कर रखें.

गणेशजी मान गए. उन्होंने कहा कि मैं बालक हूं ज्यादा देर नहीं ठहर पाउंगा. इसलिए जब वह थक जाएंगे तो तीन बार रावण को पुकारेंगे. अगर रावण नहीं पहुंचा तो वह आत्मलिंग नीचे रख देंगे. सहमत होकर रावण स्नान के लिए गया.

रावण जैसे ही समुद्र में पहुंचा गणेशजी ने तीन बार जल्दी-जल्दी रावण को पुकारा और आत्मलिंग नीचे रख दिया. क्रोधित रावण ने गणेशजी के मस्तक पर प्रहार किया. गणेशजी जमीन में कुछ धंस गए. रावण ने आत्मलिंग उठाने की बार-बार कोशिश की.

आत्मलिंग उखड़ा तो नहीं लेकिन उसके बल के कारण उसका आकार गोकर्ण(गाय के कान) जैसा हो गया. उस आत्मलिंग को गोकर्ण महाबलेश्वर कहते हैं. रावण ने गुस्से में भरकर आत्मलिंग के ऊपर सुसज्जित सामग्रियों को भी दूर-दूर फेंक दिया. वे सारे चार अलग-अलग स्थानों पर जाकर गिरे चार लिंग के रूप में स्थापित हो गए. (गोकर्ण की लोकप्रिय कथा)

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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