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माता यशोदा कन्हैया को दूध पिला रही थीं. तभी उन्हें ध्यान आया कि चूल्हे पर रखा दूध उबलकर गिर रहा है. उन्होंने कान्हा को झटपट सीने से हटाया और दूध बचाने को चौके की ओर भागी.
जिस प्रभु को बालरूप में अपने आंगन में देखने के लिए इतना तप किया, ब्रह्माजी से वरदान लिया उसके ममता सुख को छोड़कर दूध की चिंता हुई! जिस सुख को देवता तरसते हैं उसे छोड़ दूध बचाने भागीं. माता माया में ऐसी फंस गई हैं!
कन्हैया ने पास में पड़ा बाट उठाया और मटकी को दे मारा. मटकी फूट गई और सारा दही मिट्टी में मिल गया. थोड़ा दूध बचाने गई थीं और हांडी भरके दही गंवा दिया. माता तो क्रोध करेगी यह सोचकर कान्हा कमरे में छिप गए.
वानरों ने देखा तो आ गए उनके पीछे. प्रभु ने पूर्व अवतार में वानरों का सहयोग लिया था. ओखली पर चढ़े और मक्खन निकालकर वानरों को बांटने लगे. माता खोजती हुई पहुंच गई.
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